उस लम्हे में मोहब्बत की है,
वादा करने से कतराता हूँ
वादाखिलाफी से बगावत की है,
जुदाई में बेवफाई का रोष नहीं
इसलिए जाते वक़्त रुस्वाई नहीं की है।
She: why r you leaving? Is it that? Decide what you exactly want?
He: don't be dependent on others point of view. Its ur life. Decide n move on.
She: better you say your mind. It's about life. It's about us.
He: (abruptly) no. It's not us. It was never. I can't do this.
She: again you are leaving?
He: don't blame others. U decide ur things yaar and go with that. How does it matter?
She: I don't blame you. I just ask why, how? Because it affects me n my life.
*****
She: u end so abruptly.
He: I am scared.
She: to whom?
He: I don't know. May be, myself.
She: try me.
He: you please go.
She: (After a silence) alright.
He: ( looking at her) you will be ok.
She: you will be fearless.
****
He: BJP won.
She: m scared. Not a good news.
He: why? U expect someone else.
She: aah...this result is like love. Whatsoever happens, I will be miserable.
As a citizen or as a lover.
****
He: what separates us?
She: we both are mindful. I think about future and you live in this moment only.
****
HE: (aftr breakup over whatsapp) send me ur that pic.
She: (looking at phone) (smiling)
He: ??
She: happily looking at phone screen
He: just one pic
She: (is that whatsapp makeup aftr brkup) this time...it's a big no.
His phone gets a cute posed picture of a monkey.
****
Everytime He restarts his love life with his lady; She, over a cup of coffee. Though they r coffee lovers, they ordered just one cup for two people...coffee couple.
****
He: I can't be here anymore.
She: u leaving?
He: silence
She: are you there?
He: you take care. Bye.
She: silence
Now she chose his way. She too remained silent.
Usually, He loves She. She understands He.
बड़ा वक़्त लग गया एक बात कहने में,
न जाने क्यों, उन दिनों में कई बात हो गयी।
अब जो ये बात आ गयी सामने,
बड़ा वक़्त लग रहा एक साथ छूटने में,
न जाने क्यों, एक बेहरुपिए से मुखौटा मांग बैठी मैं।
**********
बड़ा कारवाँ लंबा है,
बड़ी देर हो रही है,
तुम कह दो तो,
पूछ लूँ,
मेरी जान जल रही है।
किश्त में जी लूँ
या दफन कर दूँ तुझे,
तेरी लाश को मरने में,
कई शाम गुज़र रही है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में बीते दिनों डरने डराने के किस्से ने फिर से कुछ नई आवाज़ों को जनम दे दिया। ये जितना अब डराते है ये उतना बोलती है। मज़े की बात ये है कि ये पहले भी डरते थे इसलिए दबा के छुपा के रखते थे और आज भी डरते है इसलिए डराते है। गुलमेहर तो एक नाम है, न जाने कितनी आवाज़ें विश्वविद्यालय की सड़को पे कदम ताल कर रही है। न तो ये नारे वाली आवाज़ है, न धमकी वाली है और न ही गुर्रा रही है। ये बस प्यार से शांति से समझा रही है कि थोड़ा अब तुम भी सीख लो इज़्ज़त बचाना, नाक न कटवाना, सरेआम माँ बाप के साथ साथ देश की इज़्ज़त न लुटवाना। क्योंकि लड़कियां कहाँ देश की इज़्ज़त लुटवाती है? अभी पहुच ही नही पायी है वहां तक। अभी तो इनके बोलने पे ही हंगामा बरपा है। समझ नही आता, फिर डर के ये बाबू भइया लोग काहे आय बाय बकने लगते है। ये जैसे डरते है तभी,एकदम उसी वक़्त लड़की के चरित्र पे वार करने लगते है और बलात्कार करने के कार्यक्रम तक पहुच जाते है। इन स्पेशल लड़को अथवा समाज के इस वर्ग को महिलाओं से अत्यधिक प्रेम है पर कंफ्यूज है लगता है ये सब। या तो देवी समझते है या फिर दासी। खैर ये तो लंबी कहानी है इसे सलटाने में तो कहानी बन जायेगी हमारी आपकी। पर हां, इस एकजुट निडर आवाज़ों ने ये ज़रूर कहा है कि अब ये बोलेंगी। एक साथ बोलेंगी। हक़ से बोलेंगी।
फैज़ अहमद फैज़ साहब की ये पंक्तियां कॉलेज की दिनों में ज़ुबां की तरफ से एक वर्कशॉप में सुनी थी। हिम्मत दे जाती है। ये हम सब के लिए जिनको बोलने की वाक़ई ज़रूरत है और खासकर हमारी बहनों के लिए।
Bol, ke lab azaad hai tere:
Bol, zabaan ab tak teri hai,
Tera sutwan jism hai tera –
Bol, ke jaan ab tak teri hai.
Dekh ke aahangar ki dukaan mein
Tund hai shu’le, surkh hai aahan,
Khulne-lage quflon ke dahane,
Phaila hare k zanjeer ka daaman.
Bol, ye thora waqt bahut hai,
Jism o zabaan ki maut se pahle;
Bol, ke sach zinda hai ab tak –
Bol, jo kuchh kahna hai kah-le!
बोल, कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल, ज़बां अब तक तेरी है
तेरा सुतवां जिस्म है तेरा
बोल, कि जाँ अब तक तेरी है
देख कि आहन-गर की दुकां में
तुन्द हैं शोले, सुर्ख हैं आहन
खुलने लगे कुफ्लों के दहाने
फैला हर इक ज़ंजीर का दामन
बोल, कि थोड़ा वक्त बहुत है
ज़िस्मों ज़ुबां की मौत से पहले
बोल, कि सच ज़िन्दा है अब तक
बोल, जो कुछ कहना है कह ले
The literal and poetic transliteration is below:
Speak up, while your lips (thoughts) are (still) free
speak up, (while) your tongue is still yours
Speak, for your strong body is your own
speak, (while) your soul is still yours
Look at blacksmiths shop
hot flames makes the iron red hot
opening the (jaws of) locks
every chain opens up and begins to break
speak for this brief time is long enough
before yours body and words die
speak, for the truth still prevails
speak up, say what you must.
जब जड़ें कमज़ोर होती है,
हवाएं बेचैन हो
उसे खींच लेती है
अपने आगोश में,
वो पेड़ झुक जाता है
किसी एक ओर
अपना अस्तित्व बिखरता हुआ देखता है
एक असहाय सा,
छोटा सा झोंका भी
उसे छेड़ जाता है
मनचलो सा,
वो झुका पेड़
जो कभी उन हवाओं संग
झूम झूम सावन में
कजरी गाया करता था,
बारिश में उन संग
बिना दगा
खूब नहाया करता था,
आज झुका
खुद को बचाने की चाह में
हवाओं की बेवफाई पे भी
झूम जाता है।
वो बेदर्द बस
उसका दिल तोड़
इतरा के चल देती है
किसी मजबूत पेड़ डालों के संग,
कौन जाने
कोई क्यों पूछे
जड़े कमज़ोर हुई कैसे,
हवाओं के थपेड़ों से
मिली चोट हटी कैसे,
बस किसी ने एक राहत सुझा दी
कल कुछ आरियां दौड़ पड़ी थी
उसकी बाहों पे,
किसी का घर सजाने
किसी की लाश उठाने
वो चल पड़ा फिर
यूँ ही मर के भी किसी के काम आने,
उसे ये पता है
वहां भी वो हवाएं मिलेंगी
कभी वो उन्हें जलायेगा
कभी वो उसे बुझाएगी
जड़े खो के
अब वो बेनाम हो गया है
हवाओं की जलन ने उसे
नया नाम 'आग' दिया है।
आज सारी उधारी ख़तम कर दी
कुछ दोस्ती ख़तम कर दी
कुछ यारी ख़तम कर दी
आज सारी उधारी ख़तम कर दी।
कंगाल पड़ी बिस्तर पे
गिनने जो बैठी कमाई
तो पता चला उधारी चुकाते चुकाते
मैंने माँ की दवाई की रकम भी खत्म कर दी
मैंने जीने की एक उम्मीद
उस उम्मीद में बहने वाली वो हँसी
ख़तम कर दी
पर आज वो उधारी ख़तम कर दी।
वो उसका मुझे सताना
दिल भर के प्यार करना
मुझपे भरोसा जताना
सब उधारी का था
कुछ चंद नोटों के साथ
वो हर दिन की कहानी ख़तम कर दी।
गरीबी का रोना
रोयेंगे किससे
उधारी चुका के
बनिया के घर जाने की
रवायत ही ख़त्म कर दी।
बहुत कुछ उसके हिसाब से चलाया
जाते जाते अपनी जान सी प्यारी
एक सिफारिश सी
मेरी नयी किताब वापस कर
सारी साझेदारी ख़तम कर दी।
यारी दोस्ती शाम का उठना बैठना
सारे बहाने थे उससे मिलने के
वो हर बातें ख़तम कर दी।
ख़तम हुआ ये सब
क्योंकि हमने उधार को
दोस्ती और दोस्ती को मोहब्बत यारी समझ
उसके पैसे की चाय पी गए थे
उससे उसके ही घर में
दीवार की रंगाई का रंग बता गए थे
वो ठहरा बनिया
उसे बस काम आता है
ज़िन्दगी का हर सवाल
नफा नुक्सान में ही समझ आता है
हम ठहरे कंगाल,
उसके लिए पूरे बेकाम
ऐसे बेकार से उसने
रुसवाई भली समझी।
हम ठहरे ख़ुदग़र्ज़
हमने उधारी ख़तम कर
अपनी रुखसत की,
यारी की विदाई सही समझी।
बिना बोले सब खाली कर
उधारी ख़तम कर दी।
दिल में अपनी बात रख
उससे जुदाई शुरू कर दी।
आज हमने सारी उधारी ख़तम कर दी।
वो उन नोटों का गठ्ठर
मेरी वो किताब का बंडल
ले के जाता रहा,
मैं धड़कने संभाले
यही सोचती रही
उधारी ख़तम कर
मैंने मेरी एक कमाई ख़तम कर दी।
मैं पड़ी खाट पे
सोचती हूँ,
कैसे समझू
कैसे समझाऊं
दोस्ती मोहब्बत
क्यों मोहताज़ है
क्यों चंद लम्हे
रसूख दिखावा
सब आज़ाद है
हम गरीब तो क्या
दिल के मालिक है हुज़ूर
जितना करोगे औरों संग
उतने में तो हम
वफ़ा की एक पहचान है।
तुम करोगे क्योंकि
तुम बनिया जो ठहरे
पर हम सा वफ़ादार
मिलेगा कोई
ये तुम्हारा ज़िन्दगी भर का
खुद से पूछने वाला
अकेला एक सवाल है।
हम तो बस ज़िन्दगी की सच्चाई समझ
इसका घूँट पी के जी जायेंगे
बिना उधारी भी
माँ का इलाज करा जायेंगे
तुम कही खा गए जो धोखा
पैसा नाम इज़्ज़त लुटा
सिर्फ हम ही तुमको याद आएंगे।
फिर से एक टीस उठी मन में
हमने उधारी ख़तम कर दी
इस आदत का क्या करे
दिल में हो रही हलचल का क्या करे
हमने तो दिल की ये बीमारी ख़तम कर दी।
मैं हो जाऊं जो बावरी
पत्थर फेंक मार मत देना मुझको
क्या पता किसने इस मासूम दिल को
जन्नत के सपने दिखा
तवायफ के कोठों पे छोडा हो।
क्या पता कब किसने
मीठी बातों की चाशनी में
ज़हर मग भर उड़ेला हो।
मत हसना मेरी सूरत पे
क्या पता हँसी के भूखे होठों को
किसने चीखों की गलियों से मिलाया हो।
उसके घर की किवाड़ पे
तसल्ली का नही झूठे ख्वाब का पिटारा लटकाया हो।
क्या पता कब उससे किसी ने
सपनो की आज़ादी छीन ली हो।
माना, कोई किसी से कुछ छीन नही सकता,
पर बार बार सपनो को,
उन सपनों में छिपे ख्वाबों को,
ख्वाबों की हसरत को,
मरोड़ दबोच निचोड़ सकता है।
जब पिजड़े से प्यार हो जाए
शिकारी से इश्क़ हो जाये
तो इस बावरी को पत्थर न मारना
उसने पहले ही अपनी खुशियो का गला घोंट दिया है।
अपने मरने की खबर तक
उसकी हँसी में अपनी ख्वाहिश को दफ़न देख
उनसे होती करीबी का एहसास लेती है।
इसिलिए ये पगली
अब भी
इस शिकारी से प्यार करती है।
माना इतनी मनहूस ज़िन्दगी
पसंद नही किसी को
आखिरी में तड़कता भड़कता
कुछ जोश चाहिए।
आग लगाई है मैंने
कुछ तुम भी जलो
गीत में वीर रस से नही
खुद में वीर भाव भरो।
ऐसी कोई मासूम कली
मसल के तवायफ कोठे न भेजना कभी।
वहां वीरांगनाए मरी लाश सी मिलती है
सच मानो, वो भी कितनो की रात गुलज़ार करती है।
कभी जो हो बावरी
तो दुत्कारना नही
क्या पता मेरे आंसूं किसी की
बेपरवाही का हिसाब बता रहे हो।
मैं बावरी जो हसू गला फाड़
क्या पता वो मेरे दिल के बवंडर को छुपा रहे हो
एक नई लाश के मातम को
अपना ठिकाना बता रहे हो।
ये बावरी हर घर में बसती हो शायद
एक बार रुक के देख लेना ज़रा
आँखों ने तेरा साथ देने की कसम खायी है, कम्बख्त।
अच्छा, तुझसे जो कह दिया रुक के देखने को
तू सही गलत के हिसाब में
बहक न जाना कहीँ
क्यों कि तू दरिया का किनारा
सागर की गहराई नाप भी लिया
तो अंदर शिथिल सैलाब में
टिक न पायेगा।
ये बावरी ऐसे ही बावरी नही
इसने कइयों की नज़रों को पीे रखा है
कइयों की जुबां गटक के
चमड़ी नयी बनायीं है।
तू बस देख
क्योंकि तेरे देखने से
उसकी रातों की अनबुझी नींद में
एक थकान टूट जायेगी।
क्या पता वो बावरी
यूँ ही मुस्का के सो जायेगी।
P S - Sorry for the inconvenience due to spelling mistake.
जो हुस्न का हिसाब मांगते हो
सीरत नही सूरत पे नकाब मांगते हो
चश्मा पहना के सही गलत का
अपने होने पे खिताब मांगते हो
पैसों से तौल के दोस्ती
कपड़ों के टैग से इंसान जानते हो
पहचानते तो क्या हो
बस सरनेम से रिश्ता जोड़
दुनिया से एक नाम मांगते हो
सफलता विफलता दुःख और ख़ुशी
पंडित भगवा हरा कोई काज़ी
दरिया में डूब मछली से चारा
और मगर से रहने का स्थान मांगते हो
मैं खुश तो तुम ख़ुशी की तारीख मांगते हो
तारिख जो मिली तो
उसके टिकने की तासीर चाहते हो
मेरे रोने में छुपा दर्द
या मेरे जिस्म में चुभन
तुम हर बात का कई हिसाब मांगते हो
और जब मैं देने आऊं जो कभी
अपने होने का पता
आने की जुगत
जाने की खता
गर्दिश में मेरे होश कही
मेरे सपनो के खोने की वजह
मेरा वो यूँ ही
एक मोड़ पे बैठ
किसी रास्ते को ताकने का सबब
जो आऊं बताने कभी
अपने इश्क़ का मज़हब
तो क्यों उनपे
दुनयावी किताबों का बोझ डालते हो
बचपन की कहानी के राजा
राजा की मजबूरी का बयान बाटते हो
क्यों ज़िन्दगी को मजबूरी
और मजबूरी को जीने का सबब
रिश्तों को ज़रूरत
और ज़रूरत को हकीकत
घर को अनाजों और सपनो की गठरी
बचपन को सपना
और सपनों को उडान मानते हो
जब मैं कहने आऊँ तुमसे जो
कि बिना डर के जीने दो मुझे
क्यों डरा के अपने क़ौम में
एक और बुझ चुका चिराग चाहते हो
“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो मेहनत की थकान उदासी नहीं देती या हो किसी से मायूसी...