Saturday, 4 November 2017

गठबंधन

वो आज आईने के सामने खड़े हो
खुद के ,
पुतलियां घूमा,
हर कोने की तलाशी ले रही थी
जैसे जानना चाह रही हो
कि सही से तराशा है या नहीं।
आंखों के पास
अरे नाक के बाई तरफ भी
दो काले भूरे तिल
निकल आये है
उसको भाए नहीं।
हल्के से बाएं हो के
उसने बगलों को झाँका
वो थोड़ी भरी भरी दिखी
झुर्रियों को देख आंखों के किनारों पे
गाल के गड्ढो को
हस के गहरा कर दिया
और गहरा गयी झुर्रियां भी।
उसके टूट्ठी पे
बायीं तरफ एक काला मस्सा है
सुंदर लगता है
उस पर एक काला बाल निकल आया है
बिन बुलाए मुसीबत जैसा,
वो उसे हर बार दांत से काट कर
निकाल फेंकता है,
शुक्र है, वो फिर से निकल आता है।
वो ऊपर से नीचे तक खुद को
धब्बों में जकड़े सीसे में
सवांरती रही।
पलटी और फिर चली गयी
आईने को कोरा छोड़।
शाम में
कागज़ को पानी से नरम कर
उन धब्बों को
मिटा दिया रगड़ के
आईना साफ था अब
पर अब रोशनी जा रही थी
उसने हल्की रोशनी में
उंगली से छू के
आंखे सिकोड़ के देखा
वो टूट्ठी के मस्से का काला बाल
फिर से कमबख्त आ गया है
आज फिर वो दांतों से उसे निकाल फेंकेगा।
वो पिछले पांच दिन से
एक दूजे से ख़फ़ा थे
खटपट आम है उनमें
पर कमबख्त तिल का ये काला बाल
'सिर्फ काम की वजह से'
उसके होंठो और
उसकी टूट्ठी को
कई बार की तरह
फिर बाहरी गठबंधन पे
मजबूर कर दिया।









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