हर दिन सुबह सुबह, खैर, मेरे लिए तो शाम या दिन का कोई भी वक़्त होता है, अख़बार के पेज पर काले और रंग बिरंगे छपे अक्षरो के जोड़ तोड़ से बने कुछ शब्द जो हमें एक परफेक्ट जगह दे जाते है जिससे और जहा से हम अपनी भावनाओ को, घटनाओ को दुसरो तक पंहुचा देते है. वैसे तो आज मैंने अखबार उठाया था सिर्फ पढ़ने के लिए, पर कब ये विचारो के घोड़े फिर से दौड़ने लगे और मैं एक पाठक के चरित्र से निकल कर दूसरे आवेश में आ गयी, ये बताना कठिन ही है मेरे लिए. अक्षर, कितना मैजिकल है ये इनके permutation और combination से हमे न जाने कितने शब्द और वाक्य मिल जाते है जिनसे हम दुनिया जहाँ की बकैती करने के अधिकारी हो जाते है. बस जरुरत होती है वाक् पटुता की। शब्द जैसे संविधान,प्रशासन, राजनीति, नेता,, समाज, नियम, कानून, अनुशासन, धर्म, भक्ति, भाव, शांति, विश्वास, धोखा, आडम्बर, तर्क, वितर्क, मित्र, शत्रु, जन्म, मरण, निर्वाण, परिनिर्वाण, इच्छा आदि आदि। इन शब्दों के प्रयोग से हम अपने भाव विश्वास को एक नाम देते है। एक संस्था के तहत खुद को जोड़ते है और उसका प्रचार प्रसार करते है जीवन पर्यन्त। फिर कही और से किसी के द्वारा इन्ही शब्दों के नए खेले से प्रभावित हो कुछ नया ढूंढ लेते है खुद के लिए। पर क्या आप सोचते है अगर इनका मतलब इनके आज के मलतब से उल्टा होता तो. तो क्या शायद हम उन्हें वैसे ही समझते। मसलन कानून का मतलब दाल होता और नेता का मतलब नमक. तो हम शायद बोतले, भैया कानून में नेता की मात्र ज़्यादा हो गयी है, इसका पूरा अस्तित्व ही खतरे में है, न खाने लायक न फेकने लायक। फेंके भी तो कैसे कानून और नेता दोनों ही गाढ़ी मेहनत की कमाई है। नेता का ऐसे बर्बाद होना अपने धर्म में अच्छा नही मानते। या फिर कुछ ऐसे कि लड़की को लड़का और लड़का को लड़की। तो माहौल में खबर होती कि आज लड़कियों की हरकतों की वजह से लड़को का जीना मुश्किल हो गया है. अभी हाल ही में एक लड़की कैब ड्राइवर ने MNC में काम करने वाले एक लड़के का RAPE कर दिया। अब तो ये हालत हो गयी है कि ऐसी जगहे भी सेफ नहीं है. इन लड़कियों की वजह से लड़को का जीना दूभर हो गया है. आज जहाँ लड़के अपने पैर पर खड़े हो काबिल बन रहे है वही दूसरी ओर लड़कियों की इन हरकतों और हैवानियत की वजह से लड़के अपनी ज़िन्दगी नहीं जी पा रहे है। भला इसमें लड़को की क्या गलती? कहाँ जाये ये बेचारे लड़के। इस समाज में लड़को को बराबरी का दर्ज मिलना ही चाहिए।
शब्दों के अर्थ के इस अदला बदली के खेल में यह भी बात गौर तलब है कि हमारी भावनाओ को एक नाम देते है ये शब्द। मुर्दा पड़ी किसी चीज़ को एक नाम दे उसमे उससे जुडी तमाम भावनाए जोड़ देते है, जो हमने अपने अनुभव से उस शब्द के लिए इजात की हुई है। मसलन 'माँ ' .... ये भी आलू चाकू डिब्बा कचरा गन्दा आना जाना ऐसे ही तमाम शब्दो जैसा ही है पर इससे जुडी भावनाये इसे एक स्पेशल दर्ज देती है। जिससे ये एक भावनात्मक, ममता, बलिदान, प्यार, कोमलता और न जाने कितने ऐसे भाव वाले शब्दों का घर बन जाता है और बन जाता है एक ऐसा शब्द कि जब किसी को गंध बोलना हो तो उसकी माँ को गली दे दो। उसको जरूर तकलीफ पहुँचेगी. यहां दिल्ली में और ऐसे बड़े शहरो में अब इन गालियों को SLANG कहते है। चलो कम से कम इनसे होने वाले झगडे कम हो गए, नहीं तो आये दिन इन लड़कियों( बदला हुआ मतलब) में इसी बात पर मार पीट हो जाया करती थी। अब तो यार दोस्त हर बात पर एक दूसरे की माँ बहन करते रहते है.
शब्दों के अर्थ के इस अदला बदली के खेल में यह भी बात गौर तलब है कि हमारी भावनाओ को एक नाम देते है ये शब्द। मुर्दा पड़ी किसी चीज़ को एक नाम दे उसमे उससे जुडी तमाम भावनाए जोड़ देते है, जो हमने अपने अनुभव से उस शब्द के लिए इजात की हुई है। मसलन 'माँ ' .... ये भी आलू चाकू डिब्बा कचरा गन्दा आना जाना ऐसे ही तमाम शब्दो जैसा ही है पर इससे जुडी भावनाये इसे एक स्पेशल दर्ज देती है। जिससे ये एक भावनात्मक, ममता, बलिदान, प्यार, कोमलता और न जाने कितने ऐसे भाव वाले शब्दों का घर बन जाता है और बन जाता है एक ऐसा शब्द कि जब किसी को गंध बोलना हो तो उसकी माँ को गली दे दो। उसको जरूर तकलीफ पहुँचेगी. यहां दिल्ली में और ऐसे बड़े शहरो में अब इन गालियों को SLANG कहते है। चलो कम से कम इनसे होने वाले झगडे कम हो गए, नहीं तो आये दिन इन लड़कियों( बदला हुआ मतलब) में इसी बात पर मार पीट हो जाया करती थी। अब तो यार दोस्त हर बात पर एक दूसरे की माँ बहन करते रहते है.
शब्द जैसे क्लाइमेट, ग्रीन क्लाइमेट फण्ड, कार्बन बजटिंग और कई नवजात शब्द अपनी नयी परिभाषा के साथ लोगों से मुख़ातिब होने और अपना मक़सद समझने के लिए बैठे है। शब्दों के इस जाल में तो मैं सुखद आश्चर्य में पड़ गयी कि बचपन से जिस नाम से मैंने एक चीज़ को पहचानना सीखा... अ से अनार ग से गमला वो एक खोज मात्र है जिसमे संशोधन तो नही पर हाँ इस परिवार में नए मेंबर ज़रूर जुड़ते रहे है और शायद कुछ छूटते भी रहे हो.
Comments
ye barabari ka raag alaap rahiye kuch na kuch to mil hi jayega. jis tarah iski maang aur zarurat badh rahi hai lagne laga hai sarkaar ko PDS ke antargat janta tak pahuchana chaiye ise
Ghuma fira kar "ladkiyon (alag matalab wali nahi) ke liye kuch* adhikar mange gaye hain, is abhilekh mein :) | ek "HANS" ko paine hathiyar dekar "baaz"nahi banaya ja sakta ha; hans ki marjaad (maryada) hans bane rahane mein hi hai | woh 'hans'' ki shaalinata, komalta, sahansheelata, swabhav ki nirmalta, ramaneeyta aur manoramata, kya in paine hathiyaron (jobs ki andhi daud, so called empowerment*) se sahaj rah payegi? halaanki aap kah sakti hain ki 'shikar'to 'maada baaz'bhi karti hai :)
aapko kitaabe padhne ka shauk hai shayad..plz sociologgy ki kuch buks zarur padhiye
kya aapane kisi NAREE ko jungle mein 'nirvan'/mokshya ke liye tapashya karte hue dekha ha? wah to "tyag" ki wajah se in sab hathkando (tapashya, suffering, bhagdaud) se upar uth chuki ha. sirph ek purush hi apani 'hinsatmak' chavi ko sudharane ke liye dar dar bhatakata rahta ha.
par haan, mein apase sahmat hun, ki yadi koi is andhi daud me sammilit hona chahta hai to use rokna nahi chahiye :)
aapake vichar janane ka ikshuk :)
mere shabd aapko meri baat nahi samjha paye shayad....Satyendra. par huzoor humari acchaiyon ko humari bediyaan mat bana dijiye...hume sarah ke aap protection ke bahane kamzor mat bana dijiye. meri BARABARI ki meaning hai...ki mujhe, EK MAHILA ko, meri tamaam acchaiyon, jise aapne sarahi hai, ke sath azadi ke sath paida hone, bade hone, raste par humare PURUSH sathyon ki tarah bejhijhak chalne, kisi aankho se khud ka shikaar hota dekh na darne, jeene , sochne aur karne ki barabari chahiye.
ajeeb baat hai...itni sarahniya CHARITRA wali NAREE ko ye 'meaningless barabari' mangni pad rahi hai.
umeed hai aap mera uddyeshya samjh gaye honge...:-) kyuki aap samajhdaar jaan padte hai
shukriyaa mitra..aapke samay aur bhaav ke liye..ummeed hai agli baat me humare beech kuch samanjasya zarur banega
aapake prtyuttar ke samaksh mujhe apana 'gyan' kitabi jaan padata hai. mei bhi sanvedansheel hun aur ábsolute freedom ka prasanshak hun, par maine atm-chintan aur khud se lad jhagad kar yahi niskarsh nikala ki ek stree charitra 'vandneey' hai aur use kisi andhi daud me shamil hoker khud ko proove karne ki jarurat nahi hai. halanki mujhe apane vichar aapaki pragmatic soch ke saamane kuch 'thothe' jaan padate hain, fir bhi ek udaharan de sakta hun,, ek vegetarian ko lagta hai ki 'meat' hi bestest food hai par jab vah apana vrat todta hai to use çhicken' matra ek rabar ka tukara matra lagta hai aur sochata hai ki use nonveg nahi khana chahiye tha !!!
kya aapane 'Nirmala"--premchand yaa divya--yashpaal ko padha hai?
mein to barabari ko hey samajhta tha, jaise koi apane "manik"ko "mooly patton"se badalna chahe to bhala mein kaun!!
par yadi aap aisa kahti hain ki "barabari" chahiye, to mein samajhata hun ki aap hi ke vichar achhe aur uttam hain. aur prakriti ki bhanti naree charitra me bhi change ki gunjaish hai!! mein bhi apana stereotype knowledge update kar raha hun ab isi ke saath :)
jokes apart, wish fr the same..chalo khud se hi start karein...kya bolte ho pandey ji?
Male Female dono ko apni apni visheshta ke sath swatantra aur barabar...aisa mahaul chahti hun. meri baat is tarj pe nakaari jaye ki sacchai ki jeet hoti hai, sach bada hai to use jhoodh se darna hi chahiye..bilkul thik hai,par is aand me crime ko ignore kiya jaye..mere hissab se galat hai.
Main NIRMALA zarur padhungi. dhanyawaad mitra!!
Happy new year
positive changes ho rahe hai...