Monday, 22 December 2014

मेरे नखरे और मेरा प्यार 
प्यार में मेरे नखरे 
और उन नखरों में मेरा प्यार 
सच यार 
बहुत भारी पड़ गया 
आज तो हमें भूखे पेट ही सोना पड़ गया 

उनकी आदतें थी हमसे जुदा 
हम शब्दों के खेल के शौक़ीन 
वो चुप रह कर करते थे 
हमे अपना बनाने का हिसाब 
इस चुप्पी में आज हमें रोना पड़ गया 

'वो है मेरा मालिक' 
ये उसे गवारा नहीं 
मैं करू उसकी इज़्ज़त 
इससे कोई शिकायत नहीं 
कि उसके अंदाज़ मेरे हो जाये 
मेरी कमियां छुप के कही खो जाये 
वो भी करता है कई बार ऐसा 
हम कुछ ज़्यादा 
वो थोड़ा काम कर जाए 
इन नखरों से उन नज़रो से फिर बेइज़्ज़त होना पड़ गया 
क्युकी हर कोशिश में 
नखरा भारी पड़ गया। 

ये चाह थी 
कि हमारे दरमियाँ भी कुछ संभव हो पाये 
तो हम अपनी बुराई से खूब लड़े 
पर हम भी ठहरे हठी और दुष्ट दिल 
अपना बदलना न भाये हमे 
तभी तो ये नखरे आ जाते थे 
हमे रोकने 
और देखिये ना, 
ये कमबख्त नखरा भारी पड़ गया 
आज भूखे पेट ही सोना पड़ गया। 

आज समझा इस हुनर का फायदा 
जब तुम न हो मुझे झेलने वास्ते 
ऐसे भूखे ही कुछ लिख सोना 
बड़ा सस्ता पड़ गया 
पर सच, ये नखरा बड़ा भारी पड़  गया। 

हुज़ूर, इन नखरों को समझना पड़ेगा 
अभी ये भूत हमसे उतरा नहीं है 
दुबारा खाने के वक़्त नखरा न करेंगे 
तुम्हे कहीं और इस्तेमाल करने से डरेंगे 
यार, तुम भी थोड़ा समझो 
ये ज़िदगी भर का मामला है 
ऐसे भूखे न रखो 
ये नखरे हार मान जायेगे एक दिन 
हमे अपनी वही 'गम्मो ' ही समझो 
हमे अपनी वही 'गम्मो ' ही समझो। 






1 comment:

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्‍दर भावों को शब्‍दों में समेट कर रोचक शैली में प्रस्‍तुत करने का आपका ये अंदाज बहुत अच्‍छा लगा,

हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...