Friday, 8 January 2016

इन बिखरी सी ख्वाहिशों का एक पुतला बना ले चल
सरदार पटेल सा कुछ मजबूत बना ले चल
गांधी सा झुकाव हो
शालीनता रहे
कुछ लाल बाल पाल जैसा
आतंक मचा से चल
भगत सिंह सी तेज़ी
आज़ाद से बेपर्दा ख़यालात
मौलाना सा एक नगमा बना ले चल
अम्बेडकर सी एक चिढ पैदा कर
गलत न सहने की एक आग पैदा कर
जवाहर सा कुछ कुमकुम सजा ले चल
नौरोजी की कुछ हिदायत
छिपा ले चल
टिकैत का साफा टिका के चल
बहुगुणा सा लिपट ले चल
कर्वे फुले केसब टेगोर सा
कुछ लड़ने का हुनर चुरा ले चल
कल्पना की हिम्मत
दुर्गा का गुस्सा
बेसेंट का क्षमता
राजकुमारी अमृता की तेजी
नायडू का किस्सा
चल इन देवियों का
हिस्सा चुरा ले चल
इंदिरा का डर
फिर से बना दे चल
बापू की शांति
फिर से फैला दे चल
गार्गी की इच्छा
फलित कर दे
अब बस चल
तू अपना मैं उसका
तू उसका मैं तेरा
चल सबका कुछ
मिला के
इन बिखरी सी ख्वाहिशों में
जान डाल दे चल
एक प्यारा सा
ज़िंदा...आज़ाद
तेरा मेरा हिंदुस्तान
बना ले चल।

3 comments:

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुंदर.

Pankaj Dixit said...

सुन्दर शिल्पी का सुन्दर शिल्प......
बौद्धिकता प्रधान.....

Pankaj Dixit said...

सुन्दर शिल्पी का सुन्दर शिल्प......
बौद्धिकता प्रधान.....

हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...