तुझे पढ़ लूँ
जो तू एक किताब हो
लिखावट का क्या
हर मोड़ पे दाए बाये घूम जाती है...मनचली
इन पन्नों को फाड़ के रख लूँ
मैं काबिल जो बन जाऊं
दफ़्ती का क्या
वो तो अकड़ में तुझे दबोचे रखी है...जल्लाद सी
कहे तो तुझे काले से लाल हरा गुलाबी कर दूँ
मेरे हाथ सतरंगी चादर लगी है एक
इन रंगो का क्या
कब एक दूजे में मिल
कुछ नया कर दे...बहरूपिये ये
तुझे पढ़ लूँ
जो तू इक किताब हो
आखिरी में लिख उठूँ मैं भी
तुझे और खूबसूरत बनाने वाला
एक एडिटर...नामुराद मैं
जो तू एक किताब हो
लिखावट का क्या
हर मोड़ पे दाए बाये घूम जाती है...मनचली
मैं काबिल जो बन जाऊं
दफ़्ती का क्या
वो तो अकड़ में तुझे दबोचे रखी है...जल्लाद सी
मेरे हाथ सतरंगी चादर लगी है एक
इन रंगो का क्या
कब एक दूजे में मिल
कुछ नया कर दे...बहरूपिये ये
जो तू इक किताब हो
आखिरी में लिख उठूँ मैं भी
तुझे और खूबसूरत बनाने वाला
एक एडिटर...नामुराद मैं
No comments:
Post a Comment