Tuesday, 5 January 2016

एडिटर

तुझे पढ़ लूँ 
जो तू एक किताब हो
लिखावट का क्या
हर मोड़ पे दाए बाये घूम जाती है...मनचली

इन पन्नों को फाड़ के रख लूँ
मैं काबिल जो बन जाऊं
दफ़्ती का क्या
वो तो अकड़ में तुझे दबोचे रखी है...जल्लाद सी

कहे तो तुझे काले से लाल हरा गुलाबी कर दूँ
मेरे हाथ सतरंगी चादर लगी है एक
इन रंगो का क्या
कब एक दूजे में मिल
कुछ नया कर दे...बहरूपिये ये

तुझे पढ़ लूँ
जो तू इक किताब हो
आखिरी में लिख उठूँ मैं भी
तुझे और खूबसूरत बनाने वाला
एक एडिटर...नामुराद मैं

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