सुबह सुबह मेनका गांधी का मेल आया एक पर्सनल ग्रीटिंग कार्ड हैप्पी गर्ल चाइल्ड डे का। सहूलियत के हिसाब से हिंदी या इंग्लिश में उनका सन्देश पढ़ने का आप्शन था। आज कल लड़कियो की बात हो हरयाणा का नाम न हो ऐसा हो ही नही सकता। वैसे लड़कियो के साथ हरयाणा का नाम हमेशा से जुड़ता रहा है, कभी बबली तो कभी लाड़ली। खैर, हरयाणा ने इस बार बदनामी नहीं नाम कमाया है। सेक्स रेश्यो में बढ़ोत्तरी करके। 900/1000 से 903/1000 पहुच कर। आज के मेसेज में भी हरयाणा का ज़िक्र था। काबिल ए तारीफ़ है भी। और ऐसे ही प्रोत्साहित किया जाता है। पर एक टेक्निकल बात नही समझ आई, आपके आई हो तो ज़रूर समझाइये। 900 से 903 लडकिया 1000 लड़को में मतलब 3 लडकिया बढ़ी पिछले कुव्ह महीनो में। यही मतलब हुआ न। इंडिया में हर सेकंड बच्चे पैदा होते होंगे तभी तो हम चीन को पिछाड़ने का ख्वाब देख रहे। और हरयाणा उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में लोग बच्चे पैदा करने में पीछे हटते होंगे लगता तो नहीं। जिस स्पीड में 21 साल से ही शादी कराने का सपना माँ बाप और उनसे ज़्यादा रिश्तेदार देखने लगते है उसके बाद नए जोड़े जो निपट जाते है, उनके पास क्या बचता है। बच्चे होना तो एक अहम हिस्सा होता होगा। ऐसे में सिर्फ 3 बच्चियां बढ़ी 1000 बच्चों में। मतलब अब 7 लड़को की ही शादी नही हो पायेगी। 3 लड़को का कम से कम कल्याण हुआ।
बहरहाल, आज अच्छा लग रहा था। इस इ गवर्नेंस के चक्कर में मेनका गांधी की तरफ से मुझे विश किया गया मेरे लड़की होने पे। आपको भी आया होगा आप ही तो है जिन पर बरसो से हमे बचाने का बोझ जो दिया गया है। ये दिन मनाने तो नही पर यूँ ही शाम को बाहर निकली। मुझे लगा सबको गया होगा ये मेसेज, भाई सरकार सबकी है और लड़कियां सबके लिए ज़रूरी है अपनी अपनी वजह से। और आज कल लोग ये दिन विन बड़ा मनाने लगे है। और देखिये जी, चार बार एक मोटरसाइकिल पे तीन साहबज़ादे चक्कर काट गए। इतना तो पता ही था की वो मुझे हैप्पी गर्ल चाइल्ड डे विश करने तो नही आ रहे थे। सामने से आते वक़्त मतलब चौथे चक्कर में पूछ ही लिए, पर क्या अदब से पूछा। रहती कहा है आप? हमें भी बुला लीजिये कभी। बड़ी शालीनता से गाड़ी बगल में धीरे कर के पूछे पर रुके नही। उन्हें पता था शायद ऐसी बातें तेज़ से नही कहते। लड़की की इज़्ज़त का सवाल है। वो भी भरी बाजार में। विश नही किया तो क्या इज़्ज़त का ध्यान तो रखा। पर उनकी शालीनता का जवाब मैं प्यार से नही दी पायी। थोड़ी अभद्र भाषा का इस्तेमाल, भौं का सिकुड़ना और चिल्लाई भी। उसने मेरी इज़्ज़त का इतना ख्याल रखा और मैं कि भड़क गयी। खैर, उसे शायद नही जानना था वो चला गया। लोग घूरने लगे। सारा गर्ल चाइल्ड का भूत उतर गया। ऐसे लग रहा था जैसे वैलेंटाइन डे के दिन किसी लड़की को लड़के न छेड़े। उतना बुरा लग रहा था। डे सेलिब्रेशन खत्म नही हुआ था। एक अंकल जी ने ठान लिया था की मुझे आधे रस्ते पंहुचा के ही मानेंगे। वो कम से कम दो किलोमीटर मेरे रिक्शे के आगे पीछे अपनी स्कूटी ले कर चलते रहे। कितना मुश्किल होता होगा स्कूटी को रिक्शे के हिसाब से चलाना। पर अगर लगन हो तो सब पॉसिबल है। इसे कहते है ध्यान रखना। आप घर से बाहर निकलिए एक तबका आप पर बराबर नज़र रखेगा कि आप सही से चल रही है न, सही से पहन ओढ़ रखा है न, भाई ठंठ लग सकती है। आज कल ऐसे ही सूरज खिचड़ी बाद ठंठ के मज़े दे रहे । कहते मैं कुछ दिन बाद आऊंगा। खैर, अपनी बात पे आते है। मैं बेवजह उन अंकल पे गुस्सा रही थी। एक पॉइंट पे मैंने उनसे बोल ही दिया आप दूसरा रिक्शा क्यों नही कर लेते। साथ चलने में आसानी होगी। बुरा मान गए शायद, तुरंत स्पीड बधाई और चले गए। मैं फिर अकेले ही घर तक आई।
कुछ नया नही था। हर रोज़ कइयों के साथ होता है। कुछ तो इतना हक़ समझ बैठते है कि सिर्फ घर तक छोड़ते नही है बल्कि बुखार वैगेरह भी चेक करने लगते है हाथ गला पकड़ के। क्या किया जाये। हमे नही पसंद उन लोगो का ये तरीका। क्या करते अगर वो रुक के जवाब मांगने लगता तो। बिना जाने जाता ही नही तो। क्या करते अगर वो अंकल घर तक आते और फिर कल मिल जाते। बेचारगी लग रही है मेरी बातों में। आप कहते लड़ना सीखो हम कहते है जीना सीखो। हम अक्सर अनसुना कर देते है इन्हें। पागल समझ कर। रस्ते पे घूमता हुआ पागल। पर यही पागल जब घर में मिल जाता है तो आपका अपना बन के। कितना अनसुना करे। आपसे मैंने पूछा न कि मुझे टेक्निकल बात नही समझ आती। छेड़ने को चाहिए, सजाने को चाहिए, मारने को चाहिए, पूजने को चाहिए, सँभालने को चाहिए, पुचकारने को चाहिए, दुलारने को चाहिए, फिर वो बच्ची क्यों नही चाहिए।
मैं जिन रस्ते पे घूमते पागलो की बात कर रही थी वो मेरे भाई और चाचा की उम्र के थे। उनको बताओ तो सही गर्ल चाइल्ड पे नही वैलेंटाइन डे पे भी लड़की नही छेड़ते अगर वो न चाहे तो। जैसे तुम्हारा प्ले स्टेशन कोई न छुए तुम न चाहो तो। जैसे तुम्हारे कमरे में कोई न घुसे तुम न चाहो तो तुम्हारा फ़ोन कोई न छुए तुम न चाहो तो। भइया वो तो चीज़ें है कुछ न बोलेंगी, पर ये तो लड़की है माइनॉरिटी भी। काहे छेड़ रहे हो? काट भी सकती है। क्योंकि इनको भौकने की आज़ादी नही है बस कुछ है जो आवाज़ तेज़ कर रही है।
वैसे आपको हैप्पी गर्ल चाइल्ड डे! कुछ मनाने वाला हो तो बताइयेगा। इसमें क्या करते है। बेटी को कार्ड दो। अब मम्मी पापा को उनके दिन पे कार्ड दिया जाता है। इसमें न जाने क्या कल्चर है। वैसे हैप्पी बॉय चाइल्ड डे कब होता है?
बहरहाल, आज अच्छा लग रहा था। इस इ गवर्नेंस के चक्कर में मेनका गांधी की तरफ से मुझे विश किया गया मेरे लड़की होने पे। आपको भी आया होगा आप ही तो है जिन पर बरसो से हमे बचाने का बोझ जो दिया गया है। ये दिन मनाने तो नही पर यूँ ही शाम को बाहर निकली। मुझे लगा सबको गया होगा ये मेसेज, भाई सरकार सबकी है और लड़कियां सबके लिए ज़रूरी है अपनी अपनी वजह से। और आज कल लोग ये दिन विन बड़ा मनाने लगे है। और देखिये जी, चार बार एक मोटरसाइकिल पे तीन साहबज़ादे चक्कर काट गए। इतना तो पता ही था की वो मुझे हैप्पी गर्ल चाइल्ड डे विश करने तो नही आ रहे थे। सामने से आते वक़्त मतलब चौथे चक्कर में पूछ ही लिए, पर क्या अदब से पूछा। रहती कहा है आप? हमें भी बुला लीजिये कभी। बड़ी शालीनता से गाड़ी बगल में धीरे कर के पूछे पर रुके नही। उन्हें पता था शायद ऐसी बातें तेज़ से नही कहते। लड़की की इज़्ज़त का सवाल है। वो भी भरी बाजार में। विश नही किया तो क्या इज़्ज़त का ध्यान तो रखा। पर उनकी शालीनता का जवाब मैं प्यार से नही दी पायी। थोड़ी अभद्र भाषा का इस्तेमाल, भौं का सिकुड़ना और चिल्लाई भी। उसने मेरी इज़्ज़त का इतना ख्याल रखा और मैं कि भड़क गयी। खैर, उसे शायद नही जानना था वो चला गया। लोग घूरने लगे। सारा गर्ल चाइल्ड का भूत उतर गया। ऐसे लग रहा था जैसे वैलेंटाइन डे के दिन किसी लड़की को लड़के न छेड़े। उतना बुरा लग रहा था। डे सेलिब्रेशन खत्म नही हुआ था। एक अंकल जी ने ठान लिया था की मुझे आधे रस्ते पंहुचा के ही मानेंगे। वो कम से कम दो किलोमीटर मेरे रिक्शे के आगे पीछे अपनी स्कूटी ले कर चलते रहे। कितना मुश्किल होता होगा स्कूटी को रिक्शे के हिसाब से चलाना। पर अगर लगन हो तो सब पॉसिबल है। इसे कहते है ध्यान रखना। आप घर से बाहर निकलिए एक तबका आप पर बराबर नज़र रखेगा कि आप सही से चल रही है न, सही से पहन ओढ़ रखा है न, भाई ठंठ लग सकती है। आज कल ऐसे ही सूरज खिचड़ी बाद ठंठ के मज़े दे रहे । कहते मैं कुछ दिन बाद आऊंगा। खैर, अपनी बात पे आते है। मैं बेवजह उन अंकल पे गुस्सा रही थी। एक पॉइंट पे मैंने उनसे बोल ही दिया आप दूसरा रिक्शा क्यों नही कर लेते। साथ चलने में आसानी होगी। बुरा मान गए शायद, तुरंत स्पीड बधाई और चले गए। मैं फिर अकेले ही घर तक आई।
कुछ नया नही था। हर रोज़ कइयों के साथ होता है। कुछ तो इतना हक़ समझ बैठते है कि सिर्फ घर तक छोड़ते नही है बल्कि बुखार वैगेरह भी चेक करने लगते है हाथ गला पकड़ के। क्या किया जाये। हमे नही पसंद उन लोगो का ये तरीका। क्या करते अगर वो रुक के जवाब मांगने लगता तो। बिना जाने जाता ही नही तो। क्या करते अगर वो अंकल घर तक आते और फिर कल मिल जाते। बेचारगी लग रही है मेरी बातों में। आप कहते लड़ना सीखो हम कहते है जीना सीखो। हम अक्सर अनसुना कर देते है इन्हें। पागल समझ कर। रस्ते पे घूमता हुआ पागल। पर यही पागल जब घर में मिल जाता है तो आपका अपना बन के। कितना अनसुना करे। आपसे मैंने पूछा न कि मुझे टेक्निकल बात नही समझ आती। छेड़ने को चाहिए, सजाने को चाहिए, मारने को चाहिए, पूजने को चाहिए, सँभालने को चाहिए, पुचकारने को चाहिए, दुलारने को चाहिए, फिर वो बच्ची क्यों नही चाहिए।
मैं जिन रस्ते पे घूमते पागलो की बात कर रही थी वो मेरे भाई और चाचा की उम्र के थे। उनको बताओ तो सही गर्ल चाइल्ड पे नही वैलेंटाइन डे पे भी लड़की नही छेड़ते अगर वो न चाहे तो। जैसे तुम्हारा प्ले स्टेशन कोई न छुए तुम न चाहो तो। जैसे तुम्हारे कमरे में कोई न घुसे तुम न चाहो तो तुम्हारा फ़ोन कोई न छुए तुम न चाहो तो। भइया वो तो चीज़ें है कुछ न बोलेंगी, पर ये तो लड़की है माइनॉरिटी भी। काहे छेड़ रहे हो? काट भी सकती है। क्योंकि इनको भौकने की आज़ादी नही है बस कुछ है जो आवाज़ तेज़ कर रही है।
वैसे आपको हैप्पी गर्ल चाइल्ड डे! कुछ मनाने वाला हो तो बताइयेगा। इसमें क्या करते है। बेटी को कार्ड दो। अब मम्मी पापा को उनके दिन पे कार्ड दिया जाता है। इसमें न जाने क्या कल्चर है। वैसे हैप्पी बॉय चाइल्ड डे कब होता है?
1 comment:
Belated happy girl child day :)
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