Tuesday, 5 January 2016

बिखरी सी ख्वाहिशे

क्या कोई जहान है
इस जहान के उस पार
जहाँ चल के
मैं कर सकूँ ये बातें
जो तुम्हे अजब गजब लगती है
जहाँ कोई बैर नही
जहाँ मुझे रोका न जाये
तुम्हारे रंग को देख कर
जहाँ हो बेपरवाह दिल की बातें
जहाँ सुबह आँखे न खुले आंसू लिए
जहाँ धड़कन हर बार धड़क के दिल को डराती न हो
जहाँ मैं तुमसे मिल सकूँ
बिना तुम्हारे मजहब का नाम जाने
तुम्हे तमन्ना या रुकसाना बुला के
पहचान न करू
जहाँ सरहद पे कुछ जलता न हो
जहाँ घरो में कुछ बुझता न हो
जहाँ काले का मतलब रंग से होता हो
रंग का मतलब न होता हो
जहाँ मेरे मन की इच्छा सा एक नगर बसता हो
जहाँ छोटा बड़ा
बगावत खिलाफत ही न हो
जहाँ मैं तुमसे प्रेम करू
बिना तुम्हारा कुसूर जाने
जहाँ पैसो से नहीं आँखों से मोहब्बत हो
जहाँ मैं तुम्हे सुनु ऐसे की
मन्दाकिनी में सिक्के की झमझम हो
जहाँ हर दिल में बसता
एक नादान जगता हो
जहाँ खुशिया खेलती हो
ग़म खुशियो के ताने हो
जहाँ मैं सिर्फ एक आवाज़ हूँ
बिना करतब के खाने हो
जहाँ दो गज नही
आसमान मेरा हो....

मैं कहती रही
वो हसता रहा
कि सपने प्यारे है तेरे
असल में कोई जगह ऐसी नही

तो बना दो एक जगह ऐसी
जहाँ कमसकम फिदाइन हमला न हो
जहाँ मेरे भइया के मरने का खतरा न हो
जहाँ हर दिन एक 'गम्मू' न मरती हो
जहाँ हर दिन एक आग न जलती हो
हर दिन एक तारा न बनता हो
जहाँ हर दिन 'वो' एक कारतूस न बनता हो
हर दिन वो दिल को झटक के
निकल के
कोई दिल न भेदता हो
बना दो न वो जहा
जहाँ ऐसा कुछ न होता हो
जहाँ ऐसा कुछ न होता हो


2 comments:

Pankaj Dixit said...

सुन्दर अभिव्यक्ति.....
पंक्तिया- "जहाँ काले का मतलब रंग से होता हो
रंग का मतलब न होता हो” और
"जहाँ पैसो से नही आँखो से मोहब्बत हो” दिल को छू गयी.....

Kehna Chahti Hu... said...

Thank you Pankaj:-)

हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...