वजह तो बड़ी वाजिब है
इसलिए डर भी कम है
पर मामला तो वही है
किस्सा भी वही है
तुम मुझसे बात नहीं कर रहे
हाल भी वही है
फुरसत मिलते ही तुम ख़याल में होते हो
तस्वीर देख के काम चल जाता है
कुछ घंटो बाद फिर दोहरा लेती हूँ
कुछ नया नही है
पुराने में ही मुस्कुरा लेती हूँ
इस बार सोच रही हूँ
अब तुम न ही बात करो
कुछ दिनों की तो बात है
ज़रा मैं भी देखूं
इन दिनों में मुझमे से 'तुम' कितना कम होता है
और मैं तुममे कितनी घट जाती हूँ
देखूं तो तस्वीरो का सिलसिला ही चलेगा
या थककर कुछ और अपना लूँगी
बातें कब तक और कितनी याद रहेगी
और हँसी कब तक बातों पे टिकी रहेगी
तुम्हे क्या होता है
ये तो पता नही
तुम अक्सर मुझसे ऐसे ही
मिल के खो जाया करते हो
फिर संग हो जाया करते हो
इस बार डर कम है
शायद इस बार
मैं तुम्हे अपने साथ नही...
खुद को वही छोड़ आई हूँ
कही गए तो
साथ ही चल दूंगी
तुम्हारे पीछे भागने का
किस्सा ही खत्म कर आई हूँ।
इसलिए डर भी कम है
पर मामला तो वही है
किस्सा भी वही है
तुम मुझसे बात नहीं कर रहे
हाल भी वही है
फुरसत मिलते ही तुम ख़याल में होते हो
तस्वीर देख के काम चल जाता है
कुछ घंटो बाद फिर दोहरा लेती हूँ
कुछ नया नही है
पुराने में ही मुस्कुरा लेती हूँ
इस बार सोच रही हूँ
अब तुम न ही बात करो
कुछ दिनों की तो बात है
ज़रा मैं भी देखूं
इन दिनों में मुझमे से 'तुम' कितना कम होता है
और मैं तुममे कितनी घट जाती हूँ
देखूं तो तस्वीरो का सिलसिला ही चलेगा
या थककर कुछ और अपना लूँगी
बातें कब तक और कितनी याद रहेगी
और हँसी कब तक बातों पे टिकी रहेगी
तुम्हे क्या होता है
ये तो पता नही
तुम अक्सर मुझसे ऐसे ही
मिल के खो जाया करते हो
फिर संग हो जाया करते हो
इस बार डर कम है
शायद इस बार
मैं तुम्हे अपने साथ नही...
खुद को वही छोड़ आई हूँ
कही गए तो
साथ ही चल दूंगी
तुम्हारे पीछे भागने का
किस्सा ही खत्म कर आई हूँ।
15 comments:
Bada hi nikhara hua roop ha aapki shikayaton ka.maasumiyat ke saath adhikaar jatana koi aapse Sikhe. Mein toh use nira budhhu hi kahunga Jo aapse milkar khud hi kho Jana chahe. Bahut pasand aai.
Pankaj aapne itna aur aisa kya likh diya jo paanch baar delete krna pada.janna chahenge
:-)
बहत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति।
उक्त रचना को तीन बार पढ़ने के बाद सोचा कि बौद्धिक प्रतिक्रिया दूँ भाव को खोजा तो लगा रचना भावनाप्रधान है कभी लगा भौतिकता के करीब...नही नही ये कुछ कुछ आध्यात्मिकता का पुट लिए है...फिर लगा इसमें आध्यात्मिकता भी है भौतिकता वाली सांसारिकता भी....फिर लगा रचनाकार से पूँछ लूँ ...शब्द उलझते गए....विचार कमतर होते गए जो लिखा वह भी अर्थविहीन लगने लगा...कलम तो बौद्धिकता से चलती है बौद्धिकता से लिखती है पर मैं बौद्धिक कहाँ.....
उक्त रचना को तीन बार पढ़ने के बाद सोचा कि बौद्धिक प्रतिक्रिया दूँ भाव को खोजा तो लगा रचना भावनाप्रधान है कभी लगा भौतिकता के करीब...नही नही ये कुछ कुछ आध्यात्मिकता का पुट लिए है...फिर लगा इसमें आध्यात्मिकता भी है भौतिकता वाली सांसारिकता भी....फिर लगा रचनाकार से पूँछ लूँ ...शब्द उलझते गए....विचार कमतर होते गए जो लिखा वह भी अर्थविहीन लगने लगा...कलम तो बौद्धिकता से चलती है बौद्धिकता से लिखती है पर मैं बौद्धिक कहाँ.....
Thank you
Hey Tum hamesa Aisa Kuch likh deti Ho jo Mujhe accha lagta hai
Plzz reply for this
Thank you :-)
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