Sunday, 1 February 2015

फिर से आया वो 'जिन्न'...

थी  कुछ उलझी
कुछ सुलझी सी 
मिलता न जवाब कुछ पूछ के 
चलने लगी थी 
यूं ही सब कुछ मान के 
करने लगी थी पूरे अपने कुछ वादे 
कुछ अनकहे 
कुछ समझे से 
फिर आ गया 'जिन्न'
मुझे तोड़ने 
बहरूपिया निकला वो 
पहले प्यार से 
फिर दुलार के 
खिला दी वो हसी 
जो गयी थी उसके जाने से 
इस डर के साथ 
कि वो है तो एक जिन्न 
अपना वादा निभाने आया है 
कौन किसे रौंदता है इस बार
ये देखने और दिखाने आया है।  

था वो मेरा जिंन्न 
मेरे टूटने से दर्द था उसे 
पर वो इस बार जीतने आया था 
मुझे हरा कर खुद हारने आया था 
क्या हुआ नही पता 
इस बार वो बिखरा सा था कुछ 
पिछली मुलाकात के साथ के कुछ निशान थे 
वो दर्द थे उसके शायद 
उसी का हिसाब चुकाने आया था 
था वो  मेरा जिन्न 
मुझे हराने और मुझसे हारने आया था 

इस बार मैं और उलझी 
अपने सुलझे अंदाज़ में 
और वो छोड़ गया 
फिर से मुझे उसके इंतज़ार में। 

यह  मेरे एक पुराने ब्लॉग से जुड़ा एक तार है ,,,,इसकी पकड़ इस लिंक से जुडी है http://kahnachahtihu.blogspot.in/2013/11/blog-post_23.html

धन्यवाद 


3 comments:

Satyendra said...

kaun hai yeh 'Jinn ? thoda aur samajhaiye! vaise kuchh 'jinn' Aladin ke chirag se bhi nikale hote hain, jo sirph harkar jeet te hain; jeet kar harte nahin hain :)

Kehna Chahti Hu... said...

hhmmm....ab to jinn ko fir se bulana padega...:-)

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें।

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