ऐसा पहली दफा हुआ क्या,
मुझसे झूठ न बोल,
क्यों तू मुझे सुनकर कुछ शरमाई सी थी
वो भी खुश न थे,
क्या हुआ तू कुछ घबरायी सी थी,
मैं तेरा हिस्सा हूँ
तेरे खून से बना तेरा एक हिस्सा हूँ।
आज उन्होंने मुझे देखा था, है ना.…
पर क्यों उदासी छाई सी थी,
बोल ना माँ… तू क्यूँ घबरायी सी थी,
जिसे तूने माँ कहा, वो मुझे देख खुश ना थी
था उनके गोद में एक बच्चा
उसे देख वो भरमाई सी थी,
वो जो तेरे साथ थे हरदम
कल तक मुस्कुराकर तुझे पुचकारते थे
आज मुझे देख उन्होंने नज़रे कुछ चुराई सी थी
वो भी खुश न थे, किस्मत से उन्हें कुछ रुसवाई सी थी।
आज तू रो क्यूँ रही ?
अच्छा नहीं पूछती, पर सुन ना माँ,
रो ले जितना है रोना,
मैं तेरी खुशियाँ बन के आऊँगी, बड़ा नाम कमाऊंगी।
फिर डाक्टरनी जी आई है.…
माँ, बोल न तू क्यूँ रो रही ?
क्यूँ तू इतनी घबरायी सी है ?
ये हलचल कैसी है ?
माँ ये दर्द क्यूँ उठा?
ये घुटन कैसी है?
माँ ये मुझे खींच क्यूँ रहा?
तू घबरायी सी क्यूँ है?
माँ, ऐसे कैसे तेरी दुनिया में आ जाऊ ?
अभी तो मैं कम बनायीं सी हूँ।
इनको बोल ज़रा, मुझे दर्द हो रहा
मुझे छोड़, तुझे दर्द हो रहा,
बोल ना अपने घरवालो से
ऐसे गुमसुम सी सताई क्यूँ है?
बोल कि मैं तेरा हिस्सा हूँ
माँ दुखता है जब तू रोती है
आज तेरी आँखे कुम्हलाई क्यूँ है ?
मैं घुट रही हूँ, रोक न इन्हें
मैं सिर्फ तेरा हिस्सा ही नहीं,
इन जैसे विकसित का आधार हूँ मैं।
मैं एक खून का लोथड़ा ही नहीं,
तेरी इस सृष्टि का आधार हूँ मैं।
बार-बार दर्द की आजमाइश का,
लोगो की बेफिक्री का,
अँधेरे में ज्योति जलाने वाला चिराग हूँ।
चुप न रह, बोल दे आज,
वर्ना हर दिन तू रुलाई जाएगी
औरत हो औरत को जनने पर सताई जाएगी।
5 comments:
बोल न तू क्यूँ रो रही???
sensitively written....
Keep it up...!!!
thank you Pulkit...for the inspiration and your support.
मैंने इसे बार बार पढ़ा और हर बार ये दिल को उतनी ही गहराई से छु गया.। जिस तरहा आपने उस नवजात िशशु के निशब्द दिल का हाल शब्दों मैं वयक्त किया है हर बार इन पंक्तियों को पढ़ते ही रोंगटे खड़े हो जातें है। बोहोत बोहोत धन्यवाद आपको अपनी कृति को हम तक पोह्चाने के लिऐ। और में आशा करता हूँ बोहोत सारे लोगों तक ये पोहचे खासकर उनतक जिन्होंने अपनी बेटी की इन निशब्द बातों को नहीं समझा।
धन्यवाद।
ji prithvi...aaapki aasha pe humein bhi ummeed hai...shukriya!!!
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