वो तुम्हारे हैं

 उसने दूरी बनायी 

और दिल सबसे दूर हो गया 

वो लोग हैं 

जो मेरे बिना अकेले से थे 

उनसे दूर 

किसी के चले जाने का ग़म सींच रही थी 

किसी के अलगाव को 

ख़ुद नापसंद बन सबसे अलग हो रही थी 

वो कहने लगे 

कि काम होगा उसे आजकल

फ़ोन नहीं आता उसका 

वो बिस्तर में सिर घुसाये 

ना छत देखती ना दीवार 

मुँह पर परछाई बने फूलों को ताका करती 

क्या दिन क्या रात 

सब यूँही बिस्तर में गड्ढा बनाते 

हड्डी और मांस में लिपटे 

बंद डब्बा दिमाग़! 

सब कहने लगे कि

काम बहुत है उसको 

इसलिए अब फ़ोन भी नहीं उठाती सबका 

घंटियाँ बजती 

वो खुली आंखों से देख 

तकिया में घुसा आँख को अंधेरे में सुला देती 

पर ये कोशिश ही रह जाती 

सब कहने लगे कि

चेहरा काला पड़ने लगा है 

आँखों के नीचे गड्ढा होने लगा है 

काम बहुत ज़्यादा है उसे 

एक दिन उजाले में उसने बात की थी उनसे 

वो फिर धड़कनों के रुकने 

मौत के आ जाने 

और ख़ुद की लाश बन जाने के इंतज़ार में 

बिस्तर पर थके शरीर को साँस लेना सीखा रही थी। 

घंटी बजी और फिर कहा उन्होंने 

काम कर रही होगी अभी। 


Comments

yashoda Agrawal said…
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 30 जुलाई 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
Bharti Das said…
बहुत सुंदर रचना

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