जब मैं रोती हूं
इस नए शहर में
अपना सा लगता है।
तकिया आंसू का सहारा बन
सब समा लेता है
आंखे हल्की हो
सूज सूज के
किनारा बन जाती है
एक धारी मिल जाती है
कानो से हो के
बालो में गिर के
तकिये तक अंजाम पहुँच
कहानी छुपा जाती है
एक किस्सा तकिये में
रुई संग सूख जाता है
तकिया पुरानी है
घर से लायी हुं
अपनी लगती है।
ख्वाब देखा
बिटिया बाहों में लिपटी
पिता के सीने में सिमटी
महफूज़ है
इस प्यार की तलब में
खोई सी बिटिया
अपनी लगती है
अब
ये तकिया अपनी लगती है।
मोहब्बत एक तय सफर है
या अंजाम है
इश्क़ मामूली तबियत है
या तासीर है
ऐसे काफिराना सवालो से हट के
दुनिया से डरने पे
पिता की ममता
माँ के पल्लू सा लगती है
अब तो ये सपना
अपना सा लगता है
पापा के साथ सेल्फी
उनसे दिल खोल सब कह जाना
सपना सा लगता है
अब ये सपना अपना सा लगता है।
तकिये पे राज़ दफन कर
हर दिन एक बिटिया का उठना
अपना सा लगता है।
मामूली सही
हर उठती आँख
खुलते लफ्ज़
चालो की तेजी
हाथो के इशारे
आवाज़ों की गर्मी
तुझे नए शहर में
अपने से लड़ते देखना
अपना सा लगता है।
ये खुद से याराना
बेशक़,
अपना ही लगता है।
इस नए शहर में
अपना सा लगता है।
तकिया आंसू का सहारा बन
सब समा लेता है
आंखे हल्की हो
सूज सूज के
किनारा बन जाती है
एक धारी मिल जाती है
कानो से हो के
बालो में गिर के
तकिये तक अंजाम पहुँच
कहानी छुपा जाती है
एक किस्सा तकिये में
रुई संग सूख जाता है
तकिया पुरानी है
घर से लायी हुं
अपनी लगती है।
ख्वाब देखा
बिटिया बाहों में लिपटी
पिता के सीने में सिमटी
महफूज़ है
इस प्यार की तलब में
खोई सी बिटिया
अपनी लगती है
अब
ये तकिया अपनी लगती है।
मोहब्बत एक तय सफर है
या अंजाम है
इश्क़ मामूली तबियत है
या तासीर है
ऐसे काफिराना सवालो से हट के
दुनिया से डरने पे
पिता की ममता
माँ के पल्लू सा लगती है
अब तो ये सपना
अपना सा लगता है
पापा के साथ सेल्फी
उनसे दिल खोल सब कह जाना
सपना सा लगता है
अब ये सपना अपना सा लगता है।
तकिये पे राज़ दफन कर
हर दिन एक बिटिया का उठना
अपना सा लगता है।
मामूली सही
हर उठती आँख
खुलते लफ्ज़
चालो की तेजी
हाथो के इशारे
आवाज़ों की गर्मी
तुझे नए शहर में
अपने से लड़ते देखना
अपना सा लगता है।
ये खुद से याराना
बेशक़,
अपना ही लगता है।
5 comments:
I must say its Truely impeccable..!! Keep up the great work.
Waah!! Behtareen...
wow...enjoyed Reading and its truely incredible one.
Mann soona
Raat akeli
Aankhein sookhi
Yaadein geelii
Shahar Naya he
Log aznabee
Mann ko chhoota
nhi koi
Bheega Mann
Kehta he
Koi saath rehta he
Dhoop
Aur
dhoop me banta saaya
Raat ka saaya
Mere saaye ko
Muzsey hi ..
Door kr deta he
Karwaton ki duniya
Kab mere aansoo
Takiye ke bana deti he
Lamhon ka safar
Meelon lamba ho Gaya
Andhere ki aahatein
Dhadkanon si
Saath chalti he
Bheetar baskar
Pyaar ka ahsaas
Rehta tha jahaa
Saanson saa...
Kahaan dekhun
Kahaan dhoondhoon
Tuzey
Jo
Saath tha
Mere vichar sa
Anjaan chehre
Aznabee batein
Matlab ka saathi
Siyah
Tanha raatein
Kal mene ek paudha
Apne aangan me lagaya
Aur
Apne hisse ki dhoop usey de di
Aaj
Mere takiye par
Chandni muskura rahi he
Mein
Akeli thee ...
Akeli hun ..
Par
Ab Meri tanhai
Gunguna rahi he ...
Aaj mene mere saaye ko
Apne aage dekha
Aur mujey Pyaar ho Gaya
Dhoop see...
Us se...
Aur khud se...!!!
Bahut Khub likhe hain Madam. Aur likhte rahiye. Aapke subh chintak.
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