झीलों किनारे इंसानी शहर

उन पानी की लहरों को
किनारा रोक देता है
क्या वो बौखला नही उठती होगी
उनकी मनमर्ज़ी के खिलाफ
वो एक बांध बन
उनकी हलचल को सिकोड़ देता है
वो वापस पलट
क्या बातें करती होगी
क्या कहती होगी
अगली लहरो को
जिनका अंजाम
इन रोकी गयी लहरो को पता है
क्या ये उन्हें
रोक दिया करती होगी
या फिर उन्हें भी
टकराने
छटपटाने
पीछे धकेल उठने
सिकुड़ने
आगे चले जाने को
रास्ता दे देती है
पर ऐसा क्यों
इंसान तो ऐसा कभी नही किया करते
वो तो कोशिश करने वालो को
आगाज़ पे ही
अंजाम का ख़ौफ दे
रोक देते है
बोखलाहट
सिकुडन
टकराव से कही ज़्यादा अहमियत पाती है
इंसानी मजहब में,
ये लहरे
इतनी बईमान क्यों है?
निर्दयी क्यों है?
क्या कहती होगी
लौटी हुई लहर
फिर, नई लहर से
या पुरानी से मिल के
सब एक दूजे का
दुख बाटते होंगे
या हिचकोलों में
नई लहर को
पैदा कर
उसे किनारे से
लड़ने
उठने
गिरने
पर उसको
थोड़ा ही सही
काट के आने की
एक हिदायत के साथ
सफर को भेज दिया करती होंगी
लहरों की ज़ुबाँ होती
तो क्या ये ऐसे ही होती
इंसान कही ज़ुबाँ दिमाग़ पा
बदमिज़ाज तो नही हो गया
बिना मैन्युअल
एक बड़ी मशीन का
बेढंगा मालिक तो नही हो गया
आज रात में
लहरो को रोशनी में देखा
तारों की नही,
तारे तो अब दिन में दिख जाते है
रातों को अब नसीब कहाँ,
वो कई रंग समेटे
शहर की मदमस्ती का
अपनी धुन में
किनारो से
मिलती
लहराती
उन्हें काटने में
लगी हुई थी।
हम इंसान
पहाड़ो की मौजूदगी
और नदियों के ज़ज़्बे से बेख़बर
खुद से
भिड़ के
लड़ के
टकरा के
कटने और काटने में लगे हुए थे।
कुछ तो कट रहा था
कही किनारा
तो कही इंसान
कुछ तो टूट रहा था
कही लहरे
तो कही इंसान।

Comments

Anonymous said…
Paaniyon ke harf
Lehron ki baatein
Jheel ka kinara
Tanhaa raatein
Usey uski
Tujhe teri
Mujhey meri
Zer o zabar
Dikhti rahi
Lehrein
Kinaron se takra ke
Har baar
Tootati rahii ...
Kinare khada tu
Lehron Ko dekh raha that
Kinare khada mein
Kinaron ki soch raha tha
Kashmkash lehron me
Kinaron Ko bhi dikhti hogi
Aadat Sakht hone ki
Lehron Ko kya pata...
Thoda romani ...
Thoda roohaani
Rishta lehron se
Saahilon ka
Milne ki chah ho to
Gam kyya tootne ka
Kya baat hai...
Behtareen. Guzarish hai ki likhne wale ka naam chupaya na jaye.

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