मेरे प्यार का चुनाव

दिन भर सुबह से शाम तक
पल पल बीत जाता है
सांसो के साथ
और दोनों हमसे हम उनसे
होते हुए भी मजबूरी से
बेजान दिन बिता जाते है
कल जो होगा
उसी का डर
उसी की खुशी
एक झगड़ा
एक शिकायत
एक चुप्पी
कई बिना वारिस की सांसें
बिना मालिक की धड़कने
एक नशा
एक खुमार
एक कोशिश
कई हँसी
और एक आँसू
जो नाम बदल
पता बदल
बार बार आता है
फिर आज क्या है
ये कोशिश, हँसी, रोना, शिकायत, नशा, धड़कने
फिर इन्ही से प्यार कर लूँ।
इस उदासी से
इस मायूसी से
इन इंतज़ार से
इस हर बार की हार के बाद भी जीत लेने के एहसास से
इस हिमालय सी हिम्मत से
और पठार के झुकाव सी जिद से
नया सीखने की ललक से
बदलाव के ऐतराज़ से
पुराने को अपने नए से बदलने की जद्दोजहद से
माँ के पेट से चिपक कर सोने
पापा से मन ही मन प्यार कर लेने से
और उस आंसू से
जो मेरे रिश्तों की अमावस्या पूर्णिमा दोनों है
ये आज प्यारा है
इससे प्यार होने लगा है
फिर से मैं मज़बूत कड़ी बन रही
इस खींचातानी से प्यार करु
या आने वाले हार जीत के हिसाब से ।
अभी लिखने में बीतती तस्वीरों से प्यार करू
या फिर तेरे पढ़ने के बाद के एहसास से।
मुझे अभी इससे प्यार हो रहा।
तुझे पसंद आना ना आना तेरी बात होगी।

Comments

Unknown said…
गरिमा के मन की तो गरिमा ही जाने है
Unknown said…
The way you connected tears with the amavasya and poornima of relationships was terrific. Proud of you

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