Friday, 6 July 2018

आवारा पागल इश्क़

‌होता तो है पागलपन इश्क़ में
और होती आवारगी भी है
एक पागलपन आशिक़ी में हो
ये बदस्तूर होता चला आया है
और मान भी लिया है सबने
और ये होता हर प्यार में है।
आवारगी ऐसी कि
हँसी उबासी बन
दूर दूर दो होठो को
एक संग मुस्का दे
रोंगटे खड़े हो जाए
ऐसा एहसास जगा दे ।
फिर वो हँसी
चाल ढाल की भी
मोहताज हो जाती है
इश्क़ करने की ज़िन्दगी में।
जो कही वो जाने बाबत
उठा देता है सर
ये पागलपन
अंदर समाये इश्क़ में
खुद को महफूज़ पा लेता है
वो उसका साथ छोड़
अपने अंदर अपने इश्क़ की
दुनिया बस लेता है।
ताउम्र एक हसीन ख्वाब संजोये
यादो में शत प्रतिशत
अपनी मोहब्बत पा
उसमे एक आवारगी खोज लेता है।
इश्क़ पागल आवारा सब होता है
नासमझ बईमान झूठा
बदमाश नादान ज़िद्दी भी होता है।
इश्क़ दर्द हँसी याद आंसू का दोस्त होता है
वो सिर्फ 'उससे' ही नही
'तुमसे' भी हुआ है
ये इश्क़ आखों की इजाज़त का
गर्दन की हामी का
होठो के सलीको का मोहताज नही होता
बेशक ये आवारा और पागल ज़रूर होता है।


2 comments:

Digvijay Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 08 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

मन की वीणा said...

वाह उम्दा ।

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