आवारा पागल इश्क़

‌होता तो है पागलपन इश्क़ में
और होती आवारगी भी है
एक पागलपन आशिक़ी में हो
ये बदस्तूर होता चला आया है
और मान भी लिया है सबने
और ये होता हर प्यार में है।
आवारगी ऐसी कि
हँसी उबासी बन
दूर दूर दो होठो को
एक संग मुस्का दे
रोंगटे खड़े हो जाए
ऐसा एहसास जगा दे ।
फिर वो हँसी
चाल ढाल की भी
मोहताज हो जाती है
इश्क़ करने की ज़िन्दगी में।
जो कही वो जाने बाबत
उठा देता है सर
ये पागलपन
अंदर समाये इश्क़ में
खुद को महफूज़ पा लेता है
वो उसका साथ छोड़
अपने अंदर अपने इश्क़ की
दुनिया बस लेता है।
ताउम्र एक हसीन ख्वाब संजोये
यादो में शत प्रतिशत
अपनी मोहब्बत पा
उसमे एक आवारगी खोज लेता है।
इश्क़ पागल आवारा सब होता है
नासमझ बईमान झूठा
बदमाश नादान ज़िद्दी भी होता है।
इश्क़ दर्द हँसी याद आंसू का दोस्त होता है
वो सिर्फ 'उससे' ही नही
'तुमसे' भी हुआ है
ये इश्क़ आखों की इजाज़त का
गर्दन की हामी का
होठो के सलीको का मोहताज नही होता
बेशक ये आवारा और पागल ज़रूर होता है।


Comments

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 08 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह उम्दा ।

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