मैं लिखूँगी...

मैं लिखूंगी
लिखूँगी उस दम तक
जब तक मेरी कलम
एक आंसू न बन जाये
न बन जाये वो तलवार
जिसकी ज़रूरत है
बरसो पुरानी ज़ंज़ीर तोड़ने को
एक सैलाब
जो बहा ले जाये
सबके रंज ओ ग़म
न बन जाये एक रास्ता
जो खोल दे सब रास्ते
आने जाने को उस पार से इस पार
लिखूँगी तब तक
जब तक मैं ना बन जाऊं
तेरे होने का एक हिस्सा
हिस्सा जिसमें आत्म सम्मान हो
छोड़ती हूँ इस कविता को अधूरा
अधूरी तब तक
जब तक इसे अपनी आवाज़ न मिल जाए
लिखती रहूँगी मैं
फिर तुम, कोई और
सिलसिला चलता रहेगा
कलम को आवाज़
आवाज़ को लाठी
लाठी को कारतूस
कारतूस को टैंक
टैंक को परमाणु
और फिर परमाणु को कलम का आगाज़ न हो जाये।
मैं लिखती रहूँगी
लिखूँगी तुमको भी
जो कहना चाहती हूं
ज़ुबान नही कलम की सुनोगे तुम
शायद अकेले में
थोड़े अँधियारे थोड़े सवेरे में
उस धुंधले में
जहां आईना चेहरे को
रूह जिस्म को धुंधला दिखलाता है
वहां तुम मुझसे चुप्पी वाली हां साझा कर पाओ
तुम्हारी वो छुपी हाँ
कलम की स्याही से बनी बनावट में छुपे भावना को आकार देने का पहला प्रयास होंगे
और वो धुंधलाई तुम्हारी रूह
मेरे शब्दों के दुनयावी संवादों का अनुवाद होगी।
मैं तब तक लिखती रहूँगी
और उसके बाद भी।

Comments

ideal citizen said…
The subtle beauty of this Poem touches the heart
Shreya said…
Fabulous literary piece..!!!
Anonymous said…
आपकी सभी पंक्तियों में एक अलग ही अर्थ छुपा है
दिल को छू गयी आपकी कविता।।
Anonymous said…
Literally this poem very appalaudable this poem touches my heart very nice di....
Annie Siddiqui said…
Amazing... ye larai kalam ki hai aur ye awaz gunj bar ubhrege .. bht umdaa masha Allah(👍🏻)
Anonymous said…
Likhti raho, yahi to main bhi chahti hu, but kalam ki taqat ye log kab samjhenge, agar kabhi samjhe bhi to iski awaaz barqaraar rakhna, apni kalam ki awaaz ko kabhi khaamosh na honey dena. Waiting for more beautiful lines from you dear. Keep it up. 💕💕

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