Friday, 8 April 2016

सबसे बुरी बात थी हमारे बीच की
हम हमेशा 'मैं' और 'तुम' थे..
कभी भी 'हम' नहीं बन पाये
तुम हमेशा ' मैं' चाहते थे...'हम' नहीं
और मैं 'हम' में 'मैं' और 'तुम' खोजना चाहती थी।

सच है जब जब रोइ तेरे लिए तड़प के
तुझे पाने की चाहत में,
हर बार थोड़ी सी मरती गयी
आज ज़िंदा हूँ
पर 'देसी' कब चली गयी
तुझे पता ही नही चला
'गम्मो' को तू कब भूल गया
तुझे याद ही नहीं।

भागती रही कुछ पाने को
जो था मैं सब खोती रही
हारती रही
'तू' 'वो' सब कुछ चाहते थे
मैं भी चाहती थी कुछ
तेरी चाहत पाने में मैं अपना खोती रही
किसी को पता भी नहीं चला।

वहां आसमान में मेरा कुछ नही छूटा
मैं तो यही ज़मी में दफ़न होती रही।
आज खुद से रोकर चुप होने का हुनर सीख लिया
माँ का आँचल और तेरा सीने लगा कर दुलारना
पापा की थपकी, दीदी का सम्भलना
भाई का सर पकड़ के सब समझा देना
और खुद का इंसान होना
सब याद बनते देखती रही।

शायद मैं इस दुनिया के लायक नही
ज़्यादा प्यार चाहती हूँ।
अब खुद से बात कर के सवाल पूछ
जवाब चाहती हूँ।
ये सिलसिला कब शुरू हुआ
मुझे भी पता नही चला।

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