Saturday, 16 April 2016

धरती के सौतेले













ज़मी सूखी है,
मर रहा किसान है।
पानी कम है,
भूखा गुलाम है।
पानी देते इंद्र देव बने
टैंकर वाले
कनस्तर भरता पानी से 
जेबे भरते नोटों से
दोनों ही इसी माँ की संतान है।
ये ज़िन्दगी ऐसे क्यों बेहाल है।

एक कवि कहता
आस्मां हो गया क्या बेवफा
निकली ज़मी की जान है
आग उगले जा रहा 
ऐसी भी क्या बेरुखी सवार है
सूरज जल जल इसे जलाये है
धरती गुस्से से काँप जाये है
हर दिन अब आता भूकंप भरमार है

गलती किसकी है 
सुलटा लो जल्दी भाई
तुम दो के चक्कर में
फ़सी हमारी जान है।

कवि कितना पागल है
सोचे ये झगड़ा उनका है
जो खुद मर रहे हमारे तांडव से
मांगे उनसे अपने प्राण है। 
कोई समझाए जो इसको
गर हम इतने भोले होते
पेड़ न कटे होते इतने
पानी पानी सा न बहाया होता
सब छोडो, इतना बस देखो
आज जब मरते हमारे आधे जन
फिर भी
हम IPL से कमा रहे पहचान है।
कहते हम जनतंत्र है
जिसको पानी चाहिए 
वो जाये
हम तो अभी ग्रीन पिच कवर्ड
इंडिया की शान है। 
हमको ज़िन्दगी जीने का
सेक्युलर अधिकार है।

हर घर में नल
अंदर भी बाहर भी
ऐसी इनकी मांग है
आर ओ किनले रहीश हो रहे
बस पानी मिल जाये
कुछ की इतनी सी ही डिमांड है।
कवि तू क्यों माटी और आस्मां को
घूरे जाता
वो तो अलग हुए है
क्योंकि धरती पर
उसके सौतेलो का राज़ है।




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