Sunday, 7 June 2015

मुझे रोना अच्छा लगता होगा

मुझे रोना अच्छा ही लगता होगा
तभी तो मैं हर बात पे रो देती हूँ, 
जो कड़वी होती है
जो चुभती  है
जो दिखती है कि गुस्से में निकली है
जो तकलीफ पहुचाती है
वो कहते है कि रोना कमजोरी है 
मेरे आंसूं मेरी बेवकूफी है,
मेरी कमजोरी है
फिर भी,
मैं हर बार रोती हूँ।

जब रोऊँ उनके लिए 
तो वो 'इमोशन' होता है 
जब रोऊँ उनकी बातों पे 
तो, 'इमोशनल फूल' होता है। 

मैं जब रोऊँ अपने लिए 
तो, 'बेवकूफ' हो जाती हूँ।
जब न समझ पाऊं 
उनकी चालक बातें 
तब रोने पे 
'कन्फ्यूज्ड' कहलाती हूँ। 

मैं 'लड़की' हूँ 
इसलिए 'अक्सर' रोना
'आदत' होती है मेरी। 
'फेमिनिस्ट' वाले टैग से 
अब आफत होती है मेरी। 
फिर भी, 
मैं हर बार रोती हूँ। 
शायद, 
मुझे रोना अच्छा लगता होगा। 
बुरी आदत में रहना अच्छा लगता होगा।  

'लड़की' हूँ 
इसलिए 'माफ़' है,
वरना इतने आराम से 
खुले आम
ये कह न पाती 
मुझे रोना अच्छा लगता होगा।



2 comments:

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुंदर.आपकी रचनाओं में विविध भाव देखने को मिलते हैं.
नई पोस्ट : मैं सितारों के ख्वाब बुनता हूं

Kehna Chahti Hu... said...

dhanyawaad Rajeev ji :-)

हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...