Saturday, 13 June 2015

बातें हमारी ;हमारे बीच की

याद हैं जो तुमने पिछली बार चाभी का छल्ला मंगवाया था मुझसे
मेरे महंगे से छल्ले लाने पे
उस ढाबे के सामने चलते चलते ही डाटा था मुझे
की महंगा क्यों लायी थी मैं
उस डाट में तुमने
उसका पैसा भी नही दिया मुझको
मैं अब भी हर बार एक नया अच्छा छल्ला
तलाशती हूँ
पर मिला ही नही '
वो हम दोनों पसंद न था ज़्यादा
कुछ अच्छा पर सिंपल सा
दिखा ही नही
तसल्ली है की हर शाम जब घर आया करोगे
तो उसे देख मुझे याद करोगे
उसे मेज पे फेकने से पहले या बाद में
एक बार तो याद आएंगी मेरी
बस ऐसे ही मेज पे जगह चाहती हूँ।

आज मेरी चाभी का छल्ला खो गया है
क्या हम उस एक छल्ले में दो चाभी रख सकते है ?

एक बार रात में तुम्हे मना कर थक गयी थी
तुम्हारी मेज के कोने के पास
दरवाज़े और मेज के बाच की जगह में
मैं जा कर नीचे बैठ गयी थी
रो रही थी
कि  तुम मान ही नही रहे
अचानक एक हाथ जो बढ़ा मेरीओर
तुम बुला रहे थे
मुझे बित्तर में
टेबल लैंप की हलकी रौशनी में
सिर्फ आँखे नज़र आ रही थी दोनों की
आंसू भरे हुए
एक दूसरे को निहारती कि
कितना रुला दिया  हमने
माफ़ी मांगती एक दूसरे से  
पहली बार था शायद
मैं तुम्हरे पास बिना कुछ बोले
सो गयी थी
तुम्हरे कंधे पे सर रख के
अँधेरी रात में
वो पीली  रौशनी
पड़ रही थी दोनों पे
हल्का हल्का परछाई सा दिख रहे थे हम
बीच बीच में
आँखे खोल देख लेते थे तुम
कि  अब भी तो नही रो रही हूँ मैं
ऐसा मैंने भी कई दफे किया उस रात
प्यार होने लगा था
थोड़ा तुम्हे थोड़ा मुझे
एहसास होने लगा था।

मेज के कोने की जगह मेरी ही रहने देना। 

3 comments:

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुंदर.

Satyendra said...

addictive... want more from you :)

Kehna Chahti Hu... said...

thank u so much..
ji bilkul..kuch naya aur behtar ki koshish krti hun.

muskurate rahiye..iski adat buri lat nhi...:-)

हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...