Wednesday, 8 April 2015

क्या पहुचती है तुझ तक मेरी साँसे
साँसों में उलझी मेरी बातें
बातों में जकड़ी तेरी यादें
यादों में खोयी मैं
क्या मैं पहुची हूँ तुझ तक ।

उस रात सा क्या फिर तू आएगा
अंधरो में स्याह रंग दिखायेगा
उजली बातों के पर्दो में
हीरा मुझे बताएगा
जो तेरे होने मे वजूद मेरा खोया है
क्या वो पंहुचा है तुझ तक ।

तेरे साथ होने में जो तुझसे दुरी है
उस दूरी में दम तोड़ती मेरी खुशियाँ
क्या वो लाशे
पहुची है तुझ तक।
तुझे पाने के लिए लगाये है कई बंधन
तू और वो खेले है खेल मुझ संग
इनमे हर दिन रोती मेरी आँखे
क्या वो आँखों की थकावट
पहुची है तुझ तक।

नहीं चाहती जीना तुझ बिन
पर अब न तुझे चाहूँ
इन तड़प में मरती
मेरी हँसी
क्या वो अपराधी हँसी
पहुची है तुझ तक।

ज़िन्दगी जीने का मक़सद ढ़ुढ़ते हम दो
तय कर लिया तूने
अलग राह चलने का
मुझे छोड़ कही
क्या उस राह पे लगी चोट के पत्थर
तुझ तक पहुचे है

दे दे सुकून...सुन कर मुझ को
क्या मेरी कोई दुहाई पहुची है।
क्या मेरी मौत तुझ तक पहुची है
तेरा हो के बिना तेरे जीना
क्या वो आह तुझ तक पहुची है
क्या मेरी मौत तुझ तक पहुची है
वो हलचल बंद है
क्या बंद घडी की हलचल
तुझ तक पहुची है।

 'देसी' की मुस्कराहट में छिपी
क्या वो चीख तुझ तक पहुची है
उसकी नरम कलाई पे
तेरे हाथ के निशान
दीखते नही है अब
क्या वो तुझ तक पहुचे  है
कॉफ़ी का दाग लगा था उस दिन
वो छूट गया मुझसे
क्या वो भूरा रंग तुझ तक पंहुचा है।

इसे लिखते वक़्त
 तेरी यादों का बवंडर
घिर गयी मैं उसमे
दफ़्न होने को हूँ
क्या ये घुटन तुझ तक पहुची थी
कुछ आ के मुझे निकाल रहा
स्पर्श बताये की हाथ वो तू था
बता न क्या मैं तुझ तक पहुची हूं।
क्या सच मैं तुझ तक पहुची हूँ।
मैं उलझी सुलझी
क्या पहुची हूँ तुझ तक।

गर तू उलझे इसे सुन कर
समझ लेना मैं पहुची तुझ तक।

6 comments:

Pankaj Dixit said...

srijanatmakta ke srijan ke dvand... kuchh samajh se pare....

Pankaj Dixit said...

shayad mai samajhdar kam hu....

Pankaj Dixit said...
This comment has been removed by the author.
Satyendra said...

the limit to the recognition/obsession.... As touch is indicating towards him but still there is need (read uncontrolled desire ) for confirmation.
स्पर्श बताये की हाथ वो तू था
बता न क्या मैं तुझ तक पहुची हूं।

Nice lines, enjoyed your work with my' emotions :)
कितने कमरों में बंद हिमालय रोते हैं ,
कितने मेज़ों से लगकर सो जाते पठार ।

Satyendra said...

the limit to the recognition/obsession..... As touch is indicating towards him but still there is need (read uncontrolled desire ) for confirmation.
स्पर्श बताये की हाथ वो तू था
बता न क्या मैं तुझ तक पहुची हूं।

Nice lines, enjoyed your work with my' emotions :)
कितने कमरों में बंद हिमालय रोते हैं ,
कितने मेज़ों से लगकर सो जाते पठार ।

Kehna Chahti Hu... said...

Sabhaar mitro..!!
Santyendra aapki lines behad bhavpurna hai...waah!!

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