छू सकते हो मुझे, मैं अछूत नहीं,
चल सकते हो मेरे साथ
एक साथी मिल जायेगा
तन्हा सफ़र जल्द ही कट जायेगा
दो पल साथ बिताने से
ख़ुशी मिलेगी, दोस्ती मिलेगी
दिल मिलेंगे जब दो बातें बढ़ेगी।
कल तक इन हाथों में हाथ डाले घूमते थे
आज क्या हुआ तुम्हें
छूने से डरते हो
साथ से कतराते हो
कल तक तुम्हारी ज़िन्दगी थी मैं
आज मौत से बदतर हु
सुर्ख लाल गुलाब थी मैं
आज सिर्फ कांटे नज़र आते है तुम्हें
बढ़कर देखो खुशबू अब भी बाकी है।
तुम शाहजहाँ, मैं मुमताज थी
ख्वाब देखा था ताज जैसे आशियाने का
सब ढह गया
बस नज़र आती है कब्र मेरे इंतज़ार में
कब्र की तरफ बढ़ते कदम,धड़कने
अब कहना चाहती है अलविदा।
पर चाहती है कुछ पल का साथ
थोडा प्यार, थोडा दुलार।
आज मेरे लिए पूरा देश खड़ा है
पर तुम नहीं, तुम्हारा साथ नहीं
ये धड़कने चाहती है
एक पॉजिटिव स्पर्श, पॉजिटिव एहसास
एक पॉजिटिव पल… एक HIV पॉजिटिव ज़िन्दगी के लिए।
4 comments:
accha likha hai...kahte hain jazbaato ki aubaan nahi hoti...lekin shabdo ki zubaan ne aaj jazbato ki zubaan ko kaali raat ko ek sunahra savera de diya..
VERRY WELL GARIMA !!!
dhanyawaad...ankit
bahut hi sundar. senstitvity ko saral shabdon mein bahut pyaar se likha hai tumne. badhayi!
abhaar vyakt krti hun. dhanyawaad mrunalini
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