२६ नवंबर २००८ .... उससे पहले और उससे बाद हुए तमाम बाहरी, भीतरी तथा प्रकृतिक दुर्घटनाओ में वीर गति को प्राप्त जवानों को सलाम ....
एक क्रंद उठा दिल की पुकार सुन
काल का चक्र भी तेज़ हुआ
धरती का सीना चीर गया
थमती साँसों कि ठंठी आहें
शिथिल पढ़ते ये तेज़ कदम
माँ की छाती में समा गया
कोई वीर गया, सपूत गया
कोई काल के चक्र का आहार बना.
वो समा गया उन क्रंदन में
क्रोध की तेज़ अग्नि ज्वाल बना
वो चला गया पर छोड़ गया
अनगिनत सपने बंद आँखों के
माँ की हरी समृद्धि का
देश की शांति, उन्नति का
वो आतंक का साया हटा गया
हमे लड़ने का रास्ता दिखा गया।
वो तेज़ कदम रुक जो गए
सौ तेज़ कदम अब दौड़ेंगे
उन आँखों के सपनो को
अब हर आँखों में बोएंगे।
वो क्रंदन था, भीषण ज्वाला थी
सब तहस-नहस कर देने को
नेताओं से विद्रोह जगा
भ्रस्टाचार पतन कर देने को।
वो ज्वाला को भड़का गया
क्रंद को दहाड़ में बदल गया
बुझती आशा और अँधेरे को
साहस की किरण दिखा गया
देश कि शांति उन्नति को
वो माँ की छाती में समां गया।
कोई वीर गया, सपूत गया
कोई काल के चक्र का आहार बना।
अब वक़्त आ गया उठने का
अब सब छोड़ो और दम जोड़ो
वक़्त है सूद चुकाने का
ज़िम्मेदारी उठाने का
माँ का कर्ज चुकाने का।
न कोई जात, न कोई पात,
न हिन्दू , न मुस्लिम है,
वतन के नाम तो हम यारों
हिंदी हैं, बस हिंदी हैं।
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