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दुनिया में तमाम उलझने बगावत सितम के किस्से और ज़ुल्म हैं मेरे अपने इश्क़ और इंतज़ार की नज़्मों ने जगह रोक रखी है हैरान हूँ अपनी दीद पर ...
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हर दिन सुबह सुबह, खैर, मेरे लिए तो शाम या दिन का कोई भी वक़्त होता है, अख़बार के पेज पर काले और रंग बिरंगे छपे अक्षरो के जोड़ तोड़ से बने कुछ...
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वजह तो बड़ी वाजिब है इसलिए डर भी कम है पर मामला तो वही है किस्सा भी वही है तुम मुझसे बात नहीं कर रहे हाल भी वही है फुरसत मिलते ही तुम...
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