Thursday, 22 August 2013

आज फिर मुलाकात हुई उस सच से
जिसे बरसो पहले छोड़ आई थी कही
कि साथ उसके रहने की हिम्मत न थी।

चल पड़ी थी ज़िन्दगी के सफ़र पर
कि मंजिल मिलते ही सच को पहचान मिल जाएगी
पर बीती रात के पलटते पन्नो से
कब वो उठ सामने आ  गया
कि मैं चलते हुए थम सी गयी।

आज फिर वैसी ही उदासी छाई  है मुझमे
उतने ही आँसू
और हिम्मत भी उतनी
बस तब जज़्बात साथ देने को थे
बाजुओ  में थी ताकत, हिम्मत को भी गुमां था
पर आज सच्चाई को  सामने  पाकर
मेरुदंड भी कमजोर सी लगती है।

अब बस हवाला दिए घुमती हु
कि मैं बीती  बातों में  नहीं जीती,
और ये झुकाव मेरे बढ़ने का इशारा समझो ….

  -गरिमा मिश्रा


2 comments:

Surender Kumar Adhana said...

बहुत खूब ...............

Kehna Chahti Hu... said...

thank u surendra ji

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