Sunday, 2 February 2025

छँठा साल

मैंने उससे कहा 

आज कुछ ख़ास नहीं 

उसने कहा 

मैं साथ नहीं? 

बात गहरी थी 

जब वो ना था तो 

उसका साथ भी एक दुआ सी लगे 

अब जब साथ है तो 

ख़ास की तलाश है मुझे। 

मुझे चाहिए कुछ नया 

हर दिन में ऊब की बू सी लगे 

कैसे समझूँ 

ये इश्क़ है 

जब इश्क़ करने में 

वो ख़ुद भी लगे । 

इस कश्मकश में 

बिताया छठवाँ साल का आख़िरी दिन 

ना रो सकी ना हसने का दिल करे 

रात अब भी अकेली है वैसे ही 

बस वो साथ है 

यही सुकून लगे। 

अब ना कहती हूँ कि 

मोहब्बत है मुझे 

ना अब मैं इश्कबाज़ 

ना ही इंतज़ार में बेजार लगे। 

मरी हुई हूँ 

सबको ज़िंदा लगती हूँ। 

ना अब हँसी 

ना इंतज़ार कहीं 

अब तो ना मरने का चाव बचा 

ना जीने की उलझन 

बस बीत रही हूँ 

और ये देसी सबको समझदार लगे। 

****

अरे सुनो! उसकी बदनामी का डर है मुझे 

ये मेरा इश्क़, मेरा इंतज़ार, मेरी ऊब, मेरा हँसना 

सब मेरा है। 

वो तो अब प्यार करने लगा है। 

2 comments:

Anonymous said...

Aap kavitaon me jinda ho....asal me mar jaane par bhi aap kavitaon me jinda rahogi

Anonymous said...

Hiiii garima
Ghar se nikla pahla kadama Hamari asal jindagi imtehan suru ho jata hai nai rahe nae log milte hai bichhadte hai
Dard me ban sako to logon ki Prerna bano
Jiban se har ke kisi ne kuchh bhi nahi paya hai
Himat se age badho
Tumhare dard ko samaj na saku ga
Aasha hai ki tumhari himat
In jindagi ki thokaro se badi hogi

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