Sunday, 2 February 2025

 दुनिया में तमाम उलझने 

बगावत सितम के किस्से और ज़ुल्म हैं 

मेरे अपने इश्क़ और इंतज़ार की नज़्मों ने जगह रोक रखी है 

हैरान हूँ अपनी दीद पर 

जो मोहब्बत को मसला 

और तमाम मसलों की ताबीर मानती है। 


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माँ

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