“हमको घर जाना है”
अच्छे एहसास की कमतरी हो
या दिल दुखाने की बात
दुनिया से थक कर उदासी हो
मेहनत की थकान उदासी नहीं देती
या हो किसी से मायूसी
जब सबका साथ
एक गठबंधन सा हो
या जब ना हो अपनों से अपनेपन से बात
अकेलापन काटने को आये
तब एक आवाज़ अंदर से ख़ुद को कहती है
हमको घर जाना है
आज भी वही हुआ
ज्ञान और विज्ञान के तर्क से
ज़िंदगी की मौजूदगी को मरते देख
वही बात कौंध उठी
घर जाना है!
हमको हमारे घर जाना है!
क्यों जाना है? घर
वो जगह जहां मेरी जगह है
मेरी बात है
सोच मेरी है
सही ग़लत के परे
सही ग़लत का भेद बताती
बुराई से बचाती
मेरी महफ़ूज़ ज़िंदगी साँस लेती है
क्या हो जो घर में भी
भीड़ हो
सोच की ज़बान की
लोगों की ज्ञान की
क्या वर्जीनिया वुल्फ़ इसलिए ही अपने कमरे की बात करती हैं?
दलील शेक्सपीयर के बराबर लिखने की हो
या सांकेतिक भाषा में कई बातें कह जाने की
पर बात अपने कमरे की है
वर्जीनिया से फिर मुलाक़ात करूँगी
वजह जानने की क्यों चाहती हैं वो अपना कमरा?
क्या हम दोनों अपनी जगह चाह रहे हैं?
जगह क्या क्या दे सकता है?
यकीनन, अपना बंद कमरा भी सोचने की आज़ादी और ज़िंदगी में सांस दे सकता है!
3 comments:
भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३० जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३० जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
Thank you for sharing the piece
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