हारना मुझसे, बस इतना ही चाहती हूँ

 इस दुनिया से लड़ना मुश्किल नहीं मेरे लिए 

पर तुझसे हार जाती हूँ। 

किसी से डर नहीं लगता 

तेरे ग़ुस्से से ख़ौफ़ खाती हूँ।

सच का दमन थामा था

झूठ से आसान जानने के बाद ही 

तेरी नाराज़गी के डर से

झूठ बोल जाती हूँ।

सब्र बहुत है मुझमें 

इनकार ना कर पाओगे इससे 

तुमसे मोहब्बत चाहने में

अक्सर लालची हो जाती हूँ ।

तेरे इश्क़ में सब मंज़ूर 

तेरी आँखों में झूठ सही 

ख़ुद के लिए शिकवा नफ़रत सह ना पाती हूँ।

कहते हैं इश्क़ में दीवाना बनना आसान 

मोहब्बत में त्यागना एक हुनर 

मैं तुमसे सब माँग के सब खा के 

तुमको ख़ुद में समा लेना चाहती हूँ। 

तुम घर में आते ही मुझे अपनी बाहों में समेटे 

आँखें सिर्फ़ मुझ पर टिकाये 

नज़र भर बस मेरी नज़र हो 

हर हर्फ़ मेरा ज़िक्र हो 

मैं तुमसे ख़ुद को सराबोर हो

आख़िरी साँस तुममें ही लेना चाहती हूँ।

मैं एक स्वार्थी प्रेमिका बन 

तुम्हारी मुस्कान पर भी सिर्फ़ अपना ज़िक्र चाहती हूँ। 

मैं तुम्हें बताये बग़ैर तुमसे इश्क़ कर 

ख़ुद को गुमराह कर देना चाहती हूँ। 

हर दिन जीत जाओ तुम

हारना मुझसे, बस इतना ही चाहती हूँ। 





Comments

yashoda Agrawal said…
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 01 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर
Bahut bahut dhanyawad 🌸

Popular Posts