मैं भूल जाती हूँ
भूल जाती हूँ कि क्या सीखना है
कहाँ ग़लतियाँ हुई है
कहाँ सुधार करना है
दुनियावी तरीक़ों में हार जाती हूँ
उसके ऊपर
भूल जाती हूँ कि करना क्या है इस ज़िंदगी में
मैं कई बार आयी हूँ
कुछ कहानी कुछ क़िस्से इस बार भी बुन के छोड़ जाऊँगी
जब देखा अपना अतीत
थी खूबसूरत, घुंघराले बाल और छोटा क़द
साथी एक सुडौल शरीरवाला लंबे बाल लंबा कद
कुछ अड़ा हुआ है
रोक लेता है जैसे अंदर से
एक मुश्त उसको निकाल फेंकना है
शायद चाहत में कमी है
जो आज प्यारा है
वो कभी किसी और का साथी था
जो औरत है वो आदमी था
जो सूरत है वो सूरत ना थी
सीरत सबकी अलग अलग थी
सबकी कहानी है
मुझे भी बनानी है
फिर क्यों खोयी सी हूँ
किस बात से उधड़ी और किस बात पर रोयी सी हूँ
अनकहा सब उलझा हुआ है
कहा का कोई मतलब कहाँ है
किन रिश्तों में आँखें रोयी हैं
इस दुनिया से कई कड़ियाँ जो जोड़ी हैं
क्या मतलब है हर एक रुसवाई का
क्या होता है वादों की तुड़ाई का
मैं सब भूल जाती हूँ
घर की कहानी
वो छोटी बातें
पापा का राशिनाम
बाबाजी का १४ पुश्तों का हिसाब
जिसे प्यार जान चुना मैंने
या समझा था ऐसा
उसकी पहली मुस्कान
पहली छुअन
मेरे सपने, मेरा मक़सद
कहीं जाने के लिए उठना
कहीं उठ कर पहुँचना
ज़िम्मेदारियों को निभाना
ख़ुद के अहम को साँस देना
सब भूल जाती हूँ
खोखले अहम और खोखले हैं सपने भी
वरना भूलती नहीं मैं
कुछ तो है
वो चिल्ला के निकलने को बेताब है
रो रो के सैलाब लाने को तैयार है
पर मेहनत की कमी है या
अतीत का कोई असर
नये पाठ की है कोई बनावट
या फिर बस आलस का है असर
पर मैं भूल सब जाती हूँ
अंदर से उठती है हुंकार
कि साँसों के आने जाने को जान लेना
मुझे समेट कर उभार देगा
सब शोर हटा के
नये समंदर में उछाल देगा
फिर चाहे सब भूल जाऊँ
शिवा हो या सती
बस तुम्हें ही याद रह जाऊँ
तुम्हें ही याद कर पाऊँ
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