Thursday, 14 February 2019

मुझ अकेले कॉफ़ी पीने वाली को
टेबल फ़ॉर टू का खिताब मिल गया
दिया क्या लिया क्या
हिसाब में कच्ची हूँ
तो लेन देन का किताब मिल गया
मैने सोचा दोनो बैठ साथ मे
कॉफी पियेंगे
कुर्सी दो मेज़ एक शेयर करेंगे
उसने कुर्सी पे अपना नाम
और मेज़ पे हिसाब रक्ख दिया
में पहुँचूँ उससे पहले एक कॉफी का आर्डर कर दिया
मैं खुश कि साथी मिला
वो दुखी कि स्वार्थी मिल गया
मैने इसे कॉफ़ी दी
इसने थैंक यू भी न दिया
मैंने इसे टेबल दी
इसने इज़हार भी न किया
मैने इसे किताब दी
इसने पेन भी न दिया
वो खुश न था
खुश होना था उसको पर,
मैं बेवफा न थी
पर हरकतों से वही थी उसके वास्ते
मेरी प्यार की परिभाषा
मुझे मिलती चीजों की तसल्ली
आलसी मिज़ाज़
उसको मेरी तरफ से मिली कमी
एक तरफ बोझ बन गयी
कब मेज़ एक कोने से झुक गयी
टेबल आधी और कुर्सी दो ही रह गयी
मैं तो बस  खिड़की से देखती रह गयी
इधर मेरी शाम बनने से पहले बिगड़ गयी
कॉफ़ी ठंडी और टेबल आधी रह गयी
मैं स्वार्थी और वो साथी बन गया
मैं खुद को खो के
उसे न पा सकी
उसे मैं ना मिली
तो मैं और स्वार्थी हो गयी।

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