जब मोहब्बत का इज़हार
एक पैमाने में नपने लग जाए
तो तुम क्या बोलेगे
करोगे इज़हार
फिर उस मोहब्बत का
जो कभी किसी मोड़ पे
उनके काँधे से
कमर से
ज़ुल्फो में उलझ के
बाहों में फिसल के
कानो के पीछे से
यूँ ही शरारत में
चूम के
आंखों को आहिस्ता
होठो से
महफूज़ होने का एहसास दे के
अचानक से
किसी मोड़ पे
पैमाने में
बाज़ारू साबित हो जाने पे
क्या करोगे?
वो मादकता
वो मुस्कान
वो एहसास
वो तरंग
जो तुम्हे तुम्हारे होने तक
मिट जाने तक
समा जाने तक
रूह को छू जाने तक
रह जाती है
तुम दोनों में
उस झंकार को
मधुशाला नही
बोतलों से तौले
तो क्या करोगे?
चुप हो जाऊं क्या
उसके सम्मान में
एक दीवार
जो अच्छे बुरे की बुनियाद से
पक्की बनी खड़ी है
या कैद कर लूं
सैलाब
डर से कि
कही गंदा न पुकारा जाये।
मै नंगी प्रतिमाओं में
वैश्या की कहानी में
माँ की छाती में
बेवा की आंखों में
मेरी झुर्रियों में
एक आस देखती हूं
आस प्रेम की
जो अंगों से
होठो से
बंद दीवारों से
खुले मैदानों से
स्पर्श से
नज़रो के झुकाव से
उनको तार तार कर जाती है
वो बेमानी हो जाये
तो क्या करोगे?
बदल दो
परिभाषा की किताब
सृजन का इतिहास
इतिहास की शुरुआत
प्रेम का रंग
रंग में प्रेम
ये प्रपंच बदल दो
प्रेम को अच्छे बुरे
पलड़े में
बांट
उसे तराजू में तौलना बदल दो
वो बंधने के पैमाने
तुम्हारे नीली स्याही का स्टैम्प बदल दो
मेरे लिए एक
बस एक
रात
बीवी लड़की साली बेवा वैश्या
इन सब की जात बदल दो
बाज़ारू को घर की
घर की इज़्ज़त को
बाजार में बदल दो
इस प्रेम को
मैं तुम
तुम ये
वो मैं
इबादत को काफ़िर
और मस्जिद को दरगाह में बदल दो
मेरी चाहत को
मेरी नियत
मेरी नियत को
मेरी उल्फत में
बदल दो
मुझे पैमाने में
नाप के
शर्मिंदा करने वाले
मेरी हस्ती को
एक प्रेमी की
धड़कन में बदल दो।
तुम्हे क्यों कहती हूं
इस एहसान को
क्योंकि मुझे
बाज़ारू कहने वालों
अपनी सोच को
एक दफे
फुरसत में बदल दो।
मोहलत में बदल दो।
मक़सद में बदल दो।
इश्क़ में बदल दो।
इबादत हो या नज़्म
प्रेम को मेरी तबियत में बदल दो।
मेरी तबियत को
अपनी तासीर में बदल दो।
एक पैमाने में नपने लग जाए
तो तुम क्या बोलेगे
करोगे इज़हार
फिर उस मोहब्बत का
जो कभी किसी मोड़ पे
उनके काँधे से
कमर से
ज़ुल्फो में उलझ के
बाहों में फिसल के
कानो के पीछे से
यूँ ही शरारत में
चूम के
आंखों को आहिस्ता
होठो से
महफूज़ होने का एहसास दे के
अचानक से
किसी मोड़ पे
पैमाने में
बाज़ारू साबित हो जाने पे
क्या करोगे?
वो मादकता
वो मुस्कान
वो एहसास
वो तरंग
जो तुम्हे तुम्हारे होने तक
मिट जाने तक
समा जाने तक
रूह को छू जाने तक
रह जाती है
तुम दोनों में
उस झंकार को
मधुशाला नही
बोतलों से तौले
तो क्या करोगे?
चुप हो जाऊं क्या
उसके सम्मान में
एक दीवार
जो अच्छे बुरे की बुनियाद से
पक्की बनी खड़ी है
या कैद कर लूं
सैलाब
डर से कि
कही गंदा न पुकारा जाये।
मै नंगी प्रतिमाओं में
वैश्या की कहानी में
माँ की छाती में
बेवा की आंखों में
मेरी झुर्रियों में
एक आस देखती हूं
आस प्रेम की
जो अंगों से
होठो से
बंद दीवारों से
खुले मैदानों से
स्पर्श से
नज़रो के झुकाव से
उनको तार तार कर जाती है
वो बेमानी हो जाये
तो क्या करोगे?
बदल दो
परिभाषा की किताब
सृजन का इतिहास
इतिहास की शुरुआत
प्रेम का रंग
रंग में प्रेम
ये प्रपंच बदल दो
प्रेम को अच्छे बुरे
पलड़े में
बांट
उसे तराजू में तौलना बदल दो
वो बंधने के पैमाने
तुम्हारे नीली स्याही का स्टैम्प बदल दो
मेरे लिए एक
बस एक
रात
बीवी लड़की साली बेवा वैश्या
इन सब की जात बदल दो
बाज़ारू को घर की
घर की इज़्ज़त को
बाजार में बदल दो
इस प्रेम को
मैं तुम
तुम ये
वो मैं
इबादत को काफ़िर
और मस्जिद को दरगाह में बदल दो
मेरी चाहत को
मेरी नियत
मेरी नियत को
मेरी उल्फत में
बदल दो
मुझे पैमाने में
नाप के
शर्मिंदा करने वाले
मेरी हस्ती को
एक प्रेमी की
धड़कन में बदल दो।
तुम्हे क्यों कहती हूं
इस एहसान को
क्योंकि मुझे
बाज़ारू कहने वालों
अपनी सोच को
एक दफे
फुरसत में बदल दो।
मोहलत में बदल दो।
मक़सद में बदल दो।
इश्क़ में बदल दो।
इबादत हो या नज़्म
प्रेम को मेरी तबियत में बदल दो।
मेरी तबियत को
अपनी तासीर में बदल दो।