Sunday, 4 June 2017

कोई तो होगा जो ये बताएगा
ये चार चांद कब हुस्न चढ़ायेगा
कोई तो होगा जो ये बताएगा
चकोर की चाकरी से पर्दा उठाएगा
कोई तो होगा जो ये बताएगा
ये रात आधी क्यों मेरे संग आयी है
जा के उसको समझयेगा
आधी उसके गलियारे में टांगी है
कोई तो होगा जो ये बताएगा
इश्क़ दुआ हो या दवा
उसे खाने के बाद रोज़ खिलायेगा
कोई तो होगा जो ये बताएगा
रात चांदी से सोना कर के जाएगा
कोई तो होगा....
मेरी बहती हँसी को रास्ता दिखायेगा
कोई तो होगा जो बताएगा
मेरी चाहतों पे मरना सिखाएगा
कोई तो होगा जो ये बताएगा
सुबह की लुका छुपी वाला प्यार दिखायेगा
कोई तो होगा जो ये बताएगा
में यहां वो वहां...इस सूरज का फर्क समझायेगा
कोई तो होगा जिससे में ये पूछुंगी
बिना जवाब खिलखिला के मैं हसुंगी
वो पगली बोल के यूँ चला जायेगा
में जर्मनी में बैठी रात 10 बजे दिन को जाना सिखाऊंगी
कोई तो होगा फिर जो बताएगा
रात घड़ी से नही सूरज के जाने से है, वो ये सब समझयेगा
कोई तो होगा....
जो मेरी गुड़िया को बचपना खिलायेगा
उसको सवालों के कपड़े पहनायेगा
उसकी खुशियों को चाभी बना के
घर की मोटर से पानी खिचायेगा।
कोई तो होगा....

1 comment:

amit kumar dubey said...

Such a nice effort of expressing your imagination. Keep it up��‍��‍����

हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...