Thursday, 9 March 2017

यूँ ही...

बड़ा वक़्त लग गया एक बात कहने में,
न जाने क्यों, उन दिनों में कई बात हो गयी।
अब जो ये बात आ गयी सामने,
बड़ा वक़्त लग रहा एक साथ छूटने में,
न जाने क्यों, एक बेहरुपिए से मुखौटा मांग बैठी मैं।

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बड़ा कारवाँ लंबा है,
बड़ी देर हो रही है,
तुम कह दो तो,
पूछ लूँ,
मेरी जान जल रही है।
किश्त में जी लूँ
या दफन कर दूँ तुझे,
तेरी लाश को मरने में,
कई शाम गुज़र रही है।

2 comments:

Anonymous said...

कुछ तो मजबूरी रही होगी उनकी भी।
वार्ना यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता।

दुआ है उनकी सलामत रहो तुम।
खुशियां बांटते रहो और मुस्कुराते रहो।

खुदा गवाह है आप हस्ते हुए कितनी खूबसूरत लगाती हैं। मुस्कुराते रहिये जीवन यूँ ही निकल जाएगा।

Kehna Chahti Hu... said...

aapki ek line pasand ayi..khushiyan baatate raho aur muskurate raho...
thank you Ms/Mr. Anonymous

हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...