जब जड़ें कमज़ोर होती है,
हवाएं बेचैन हो
उसे खींच लेती है
अपने आगोश में,
वो पेड़ झुक जाता है
किसी एक ओर
अपना अस्तित्व बिखरता हुआ देखता है
एक असहाय सा,
छोटा सा झोंका भी
उसे छेड़ जाता है
मनचलो सा,
वो झुका पेड़
जो कभी उन हवाओं संग
झूम झूम सावन में
कजरी गाया करता था,
बारिश में उन संग
बिना दगा
खूब नहाया करता था,
आज झुका
खुद को बचाने की चाह में
हवाओं की बेवफाई पे भी
झूम जाता है।
वो बेदर्द बस
उसका दिल तोड़
इतरा के चल देती है
किसी मजबूत पेड़ डालों के संग,
कौन जाने
कोई क्यों पूछे
जड़े कमज़ोर हुई कैसे,
हवाओं के थपेड़ों से
मिली चोट हटी कैसे,
बस किसी ने एक राहत सुझा दी
कल कुछ आरियां दौड़ पड़ी थी
उसकी बाहों पे,
किसी का घर सजाने
किसी की लाश उठाने
वो चल पड़ा फिर
यूँ ही मर के भी किसी के काम आने,
उसे ये पता है
वहां भी वो हवाएं मिलेंगी
कभी वो उन्हें जलायेगा
कभी वो उसे बुझाएगी
जड़े खो के
अब वो बेनाम हो गया है
हवाओं की जलन ने उसे
नया नाम 'आग' दिया है।
Monday, 27 February 2017
आग
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हमको घर जाना है
“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो मेहनत की थकान उदासी नहीं देती या हो किसी से मायूसी...
-
दबे छिपे ख़्वाब जो मैं जानती भी नहीं कहीं छिपे हैं बेनाम बेपता बेतरतीबी से आँखों से इशारे करने थे ज़ोर की सीटी बजानी है बांसुरी बजाना...
-
हर दिन सुबह सुबह, खैर, मेरे लिए तो शाम या दिन का कोई भी वक़्त होता है, अख़बार के पेज पर काले और रंग बिरंगे छपे अक्षरो के जोड़ तोड़ से बने कुछ...
3 comments:
Small is beautiful if it comes in full. and this small piece of writing is nicely penned and deserve standing ovation :)
overwhelmed...
Post a Comment