Tuesday, 24 January 2017

इंसानी क़ौम

जो हुस्न का हिसाब मांगते हो
सीरत नही सूरत पे नकाब मांगते हो
चश्मा पहना के सही गलत का
अपने होने पे खिताब मांगते हो

पैसों से तौल के दोस्ती
कपड़ों के टैग से इंसान जानते हो
पहचानते तो क्या हो
बस सरनेम से रिश्ता जोड़
दुनिया से एक नाम मांगते हो

सफलता विफलता दुःख और ख़ुशी
पंडित भगवा हरा कोई काज़ी
दरिया में डूब मछली से चारा
और मगर से रहने का स्थान मांगते हो

मैं खुश तो तुम ख़ुशी की तारीख मांगते हो
तारिख जो मिली तो
उसके टिकने की तासीर चाहते हो
मेरे रोने में छुपा दर्द
या मेरे जिस्म में चुभन
तुम हर बात का कई हिसाब मांगते हो

और जब मैं देने आऊं जो कभी
अपने होने का पता
आने की जुगत
जाने की खता
गर्दिश में मेरे होश कही
मेरे सपनो के खोने की वजह
मेरा वो यूँ ही
एक मोड़ पे बैठ
किसी रास्ते को ताकने का सबब
जो आऊं बताने कभी
अपने इश्क़ का मज़हब
तो क्यों उनपे
दुनयावी किताबों का बोझ डालते हो
बचपन की कहानी के राजा
राजा की मजबूरी का बयान बाटते हो
क्यों ज़िन्दगी को मजबूरी
और मजबूरी को जीने का सबब
रिश्तों को ज़रूरत
और ज़रूरत को हकीकत
घर को अनाजों और सपनो की गठरी
बचपन को सपना
और सपनों को उडान मानते हो

जब मैं कहने आऊँ तुमसे जो
कि बिना डर के जीने दो मुझे
क्यों डरा के अपने क़ौम में
एक और बुझ चुका चिराग चाहते हो

6 comments:

Unknown said...

Superb....speechless to adore the poem. Reality being nicely and astutely projected

Kehna Chahti Hu... said...

thank you Amardeep

Preeti said...

Wah! Garima have you read Jameela Nishat, a contemporary Urdu poet from Hyderabad. Your style somewhere reminded her.

Kehna Chahti Hu... said...

Thank you Ma'am for such appreciation. it means a lot to hear from you. i will definitely read Nishat ji.

amit kumar dubey said...

छुपी हुई सी एक महादेवी वर्मा, कमला सुरैया, सुभद्रा कुमारी चौहान या खालिस "गरिमा मिश्रा"
एक प्रतिभावान पिता की "गर्वित बिटिया"
अत्यंत सुदर कविताओं को कोटिशः शुभकामनाएँ🙏

Kehna Chahti Hu... said...

Thankyou so much Amit Bhaiya

हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...