Thursday, 26 May 2016

पहली जनवरी

नए साल का नया दिवस
पहली जनवरी की सुबह सुहस
एक बैरक में बंद
दो आँखे झांक रही थी
कोई मिलने आया
ये संदेसा सुनने को ताक रही थी
रात में कोड़ो की बारिश थी शायद
बगल वाले बैरक में
मुस्कराहट कराह रही थी
कहते है पांच क़त्ल किया है
अपने बाप की मौत का बदला लिया है
जेल की सलाखों से
दो आँखे मैदान झाँक रही थी।

उसने देखा कदमो की
आलसी कदम ताल
जैसे अंधेरो में
उंगलियो का तुरपाई पे हाल
उसके पैरो की हलचल
काँपना बता रही थी
आँखे पैरो से तेज़ भाग रही थी
कोई आया है
ये संदेसा सुनने तो ताक रही थी।

एक बच्ची झोला टाँगे
बाहर नीले गेट पे
जेल के बड़े गेट पे
घर के लड्डू में ज़हर
नपवा रही थी
कोई आया है
यर सुन पैरो से तेज़
अंखिया भाग रही थी
"बिटिया आई है
रोना नही है"
"पापा आएंगे
रोना नही है"
दोनों ही अंखिया
ओस में डूबी दूब सी
मुस्कुरा रही है
दिल की धक् धक्
ऊ तेज़ उड़ती चिड़िया सी
दौड़ रही है
नया साल अच्छा हो
ऐसे बोल बिटिया पापा को
इक मीठी गुझिया खिला रही है
अच्छे नंबर लाना
खाकी वर्दी
बिटिया को सीख सिख रही है।
जाते जाते फिर से पूछ पड़ा कोई
कानूनी कागज़ तो नही पर
उनकी बतियाँ
पापा को बिना मुक़दमे
कातिल बता रही है
ये जेल की सलाखें
उनको एक मुजरिम बना रही है।





2 comments:

Satyendra said...

fir se pahla comment mera hi hoga :)
There is no need for any further explanation for following lines....The gravity in themselves smiling at meaning.
"...जेल की सलाखों से
दो आँखे मैदान झाँक रही थी।"
"..ये जेल की सलाखें
उनको एक मुजरिम बना रही है।"

aapane jail ko kab itne najdeeki se dekha?

Kehna Chahti Hu... said...

Thank you Satyendra and congrats u came first. Jail ka anubhav to ravish kumar ka prime time dekh k bhi liya ja sakta hai...

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“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...