Sunday, 1 November 2015

ज़िन्दगी न खुश है न कभी खुश होती है
ये तो मौत है जिसके डर से  जी जाती है।

जीत प्यारी होती है अनचाही भी होती है
ये तो हारने के डर से जीत ली जाती है।





3 comments:

जमशेद आज़मी said...

बहुत खूब और बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्‍तुति।

Satyendra said...

अच्छा लिखा है; कम शब्दों में काफी कुछ (सूत्र शैली ) । आधे अधूरेपन का यथार्थ चित्रण । "जीत का अनचाहा होना " बेहद सुन्दर अभिकल्पना या सुन्दर यथार्थ ।

Satyendra said...

अच्छा लिखा है; कम शब्दों में काफी कुछ (सूत्र शैली ) । आधे अधूरेपन का यथार्थ चित्रण । "जीत का अनचाहा होना " बेहद सुन्दर अभिकल्पना या सुन्दर यथार्थ ।

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