Monday, 28 September 2015

Vaaisaw

माफ़ी माँगने में सुरुरी थी मेरी
सर झुकाना नज़ाकत थी मेरी
हस के टाल देना उनकी बातें
न जी ये आदत न थी
एक हसरत थी मेरी
कि वो जाने तो
उनकी ज़िन्दगी में आखिर आया कौन है ?

खो दिया मैंने खुद को
आज जब वो साथ नहीं
सोचती हूँ ढूँढू किसको
पहले उसको या खुद को
वो जिसके मिलने पे
मैं भी मिल जाऊ शायद
या मैं मिलने पे
क्या पता वो
इर्द गिर्द ही मिले।

ऐ खुदा, तूने क्यों बनाई ये कुदरत
और बनाई तो क्यों
मिले नही खुद से
आज तेरा ये बन्दा
ढूढ़ता तेरा करम
मिल गया जो उस काफ़िर में
बता अब किस बंदगी से
ढूंढें तुझे
सोचती हूँ पहले  ढूँढू किसको
पहले उसको या खुदा को
वो जिसके मिलने पे
खुदा मिल जाये शायद  
ये खुदा के मिलने पे
वो काफ़िर भटकता दिख जाये
दूर कही
कि पहले ढूंढ लूँ खुद को
उसके होने में जो खो चुकी हूँ
खुद को
ये तो  उसकी अमानत से गद्दारी होगी।
तेरी नियत पे एक और खराबी होगी।

मैं फ़ारसी और पर्शियन
हो जाती हूँ आये दिन
हिंदी उर्दू ज़बान
सी मिल जाती हूँ अक्सर
फर्क समझना मुश्किल है
सब कहते है
क्या से क्या हो गयी हो तुम
न गरिमा न गम्मू
न अक्खड़ न शर्मीली
बस 'देसी' रह गयी हो तुम।

इसे खुद पर इल्ज़ाम न समझे
मालिक इस दिल के
ये आप का है
इस दिल को सरेआम न समझे।

PS- vaaisaw-  halt ( in farsi)
फ़ारसी एक पर्शियन शब्द है और पर्शियन एक अंग्रेजी शब्द है।

8 comments:

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुंदर.

राजीव कुमार झा said...

नई पोस्ट : जुबां पर आए तो सही

Satyendra said...

Last ki 14 lines kyun add ki? Inks Nina kavita mein ek vachitrya rahasyvad ghula hua hai, jahan ek or Sufi prabhav hai ki shayad usko dhundhane mein khuda mil jaye ya usmein hi khuda mil jaye to dusri or ek stree saadhak, is antar_dvand mein hai ki pahle khud ko Jana jaye ki usse...
Achha laga padh kar.
Alvida.

Kehna Chahti Hu... said...

satyendra ...aakhiri ki 14 lines 'add' ki gayi hai baad me. aapki samajh se prabhavit hun. mujh chori na ke barabar anubhavi aur anibhigya kalam ko sarahne ke liye bahut dhanyawaaad...
aate rahiye...muskurate rahiye..

Kehna Chahti Hu... said...

aabhar..!!

Unknown said...

Nice garima....really

जमशेद आज़मी said...

बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्‍तुति।

Unknown said...

" क्या से क्या हो गयी हो तुम
//न गरिमा न गम्मू//
न अक्खड़ न शर्मीली
बस 'देसी' रह गयी हो तुम।"

Nothing more is needed to express better than this .......

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