कुछ लिखिए ज़रा! खुद का रेप होना कैसा लगता है?

Women's studies की स्टूडेंट होने के कारण और अपना एक ब्लॉग पेज होने के कारण कई लोगों ने  मुझसे कहा, अरे आपने आज कुछ लिखा नहीं? आप निर्भया पे कुछ क्यों नहीं लिखती? एक आम लड़की क्या सोचती है इसके बारे में? यार, कुछ लिखो  आज ? विमेंस डे है आज?और तुम वो क्या वीमेन वाला सब्जेक्ट पढ़ती हो? मेरे बताने पर, हाँ हाँ वही विमेंस स्टडीज। एक्सप्लेन करते हुए अपनी सफाई में एक जवाब तुरंत आता है,अब  इसे कोई पढ़ता नहीं ज़्यादा तो नाम भी याद नहीं रहता। फेमिनिस्ट हो, कुछ लिखो यार तडकता भडकता।मैं फेमिनिस्ट हूँ, मैं ये नहीं मानती। क्युकी अभी तो मैं फेमिनिस्ट होता है या होती है, यही जानने की कोशिश में हूँ। विमेंस स्टडीज स्टूडेंट होने के नाते बाई डिफ़ॉल्ट फेमिनिस्ट का ठप्पा लगाने में लोग बिलकुल देर नहीं करते।

 ऐसा लगा जैसे डिमांड में है आज कल लिखना और लिखा हुआ पढ़ना औरतों के बारे में।  वैसे ही BBC की नयी नवेली फेमस डॉक्यूमेंट्री ने RAPE को होली में थोडा रंगीन बना दिया BAN हो कर, वो भी आधा आधा।  YOU TUBE पे सब दीखता है। BBC ने वैसे बॉलीवुड को कॉपी कर अपनी डॉक्यूमेंट्री को उसके मुकाम तक पंहुचा दिया। जहाँ इस डॉक्यूमेंट्री पर लोग बिना इसे देखे ही इसके बारे में लिख दे रहे है।  पॉजिटिव नेगेटिव न्यूट्रल तर्क वितर्क, आलोचना, समालोचना। आप चाहते है कि आज इस "गुलाबी रंग" से रंगे इस दिन में मैं बिना किसी रंग से रंगे  आंसू का हिसाब लिखू? इस गुलाबी दिन पे मैं उसके लाल बेवजह पर अपनी वजह लिए बहते खून की माप लिखू? लिखू की मैं क्या महसूस करती हूँ जब सोचती हूँ की "उसके" साथ ऐसा कुछ हुआ होगा? या कुछ बेहतर पढ़ने के इच्छुक पाठक के लिए मैं फील करू दर्द क्या लगेगा एक लड़की को जब उसका RAPE हो रहा होगा। … और क्या कि अगर वो मैं होऊ? मुझे ऐसा लिखता पढ़ बहुत से मेरे करीबी अच्छा नही महसूस कर रहे होंगे।  माफ़ी चाहती हूँ। माहौल को अच्छा करते है। चलिए इसे उस नज़रिये से देखते है जिस नज़रिये के साथ मुझे इस विषयी पर ब्लॉग लिखने का आग्रह किया गया था।  कि मैं एक  महिला होने के नाते उन बिन्दुओ को उजागर कर बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर सकती हूँ, जो एक महिला ही फील कर सकती है। मुझे नेगेटिव नही होना चाहिए क्युकी मैं आपको नेगेटिव नै करना चाहती। आखिर में मैं आप मिडिल क्लास ही तो इंडिया गेट पर बैठने वाला है। जब मैं खुद के बारे में ऐसा लिखू या बोलू तो मुझे लगता है कि मेरे करीब लोगो को यह पढ़ कर अच्छा नहीं लगेगा।  तो ज़रा सोचिये 'उसे' उस दिन/रात /दोपहर में कैसा लगा होगा? बिलकुल सही, मैं कुछ नया नही पूछ रही। न कुछ नया बोल रही।  मैं बात भी किसी नए विषय पर नहीं कर रही। RAPE की न्यूज़ देख हम बस थोड़ा कम चौंकते है जितना हम आज कल  ISIS की रोज़ सर कलम करते फोटोज को देख कर होते है। यह हमारा कल्चर बनता जा रहा है।  मैं यहाँ बिलकुल नही बोलने वाली कि एक आम मामूली सी लड़की क्या सोचती है बलात्कार के बारे में। मुझे नही फर्क पड़ता कि उस डॉक्यूमेंट्री में उस आदमी ने क्या कहा? क्युकी वो तो यही कहेगा न।  इसे इतना चौकाने वाली कौन सी बात है? अगर वो दिमागी तौर पर स्वस्थ होता तो वो उस दिन ऐसी घिनौनी हरकत करता? हाँ, हैरानी इस बात की है कि  वो अपनी गलती कुबूल नही कर रहा। तो ठीक है , सजा दीजिये उन्हें। आप पुरुष वर्ग हम महिलाओं का ध्यान रख्ह्ना चाहते है। बहुत सुन्दर विचार। हम भी वही करते आ रहे है जन्मो से। पर आपसे हो नहीं पा रहा शायद।

मैं जब बाहर निकलती हूँ तो मुझे खुद पर भरोसा होता है अपना काम कर लेने का। मेरे परिवार वालो को मजबूरी में भरोसा और धीरे धीरे उगता एहसास होता है कि अभी तक कुछ न हुआ, शायद आगे भी कुछ न होगा। इस बीच में मुझे कोई इस बात से परेशान करें कि सब ठीक है पर परेशानी आपके लड़की होने में है। क्यों की कुछ लोग मानते है कि लड़की को एक तय सीमा में काम करना चाहिए। आपको बता दूँ ये LIBERAL लोगो की विचार धारा है जो अपने घर की औरतों को बाहर भेजते है। CONSERVATIVEऔर ORTHODOX तो भेजते ही नहीं है। आजकल  orthodox liberal भी आ गए है मार्किट में। मैं वैसा ही महसूस करती हूँ जैसे किसी के बैडरूम में बन्दर घुस के नाचने लगे और सारा सामान तहस नहस कर दे। जो आपको फील होगा उससे कही ज़्यादा बुरा लगता है। बहुत सी परेशानी है मुझे आपके रवैये से जिसे आप समाज के रूल बुक में शामिल कर मानने को कहते है। मुझे नहीं बात करनी की क्या हर दिन हर घर की महिला को compulsory and born to be a women वाली कैटगोरी में रख उनसे कुछ बातें नेचुरली एक्सपेक्ट की जाती है। सुबेज उठकर वे चाय बनाये। मर्द केवल वीकली बना दे तो वाह वाह जी। आप लकी है कि  ऐसा साथी मिला है। वो रोज़ खाना बनाये। क्यों? क्युकी वो औरत है। वो माँ है। वो देवी है। वो ममता का भण्डार है।सच में? खैर,वो आप रोज़ देखते है अब उसे क्वेश्चन करना शुरू करिये न कि लेख पढ़ के और लिख के खिसक लीजिये। इस के लिए हमारे पुरुष साथियो को काम करना होगा वैसे ही जैसे वो आसानी से करती है हर दिन। मैं नाराज़ हूँ क्युकी बहुत कुछ है जो औरतों को बदलना होगा खुद में। तभी कुछ बेहतर हो पायेगा।
कुछ सवाल है आपसे। क्या हक़ है आपको हमारे होने पे सवाल उठाने का? क्युकी आप के भाई बंधू  खुद पर CONTROL नही कर पाते। क्या हक़ है आपको हमे अपनी इज़्ज़त बता घर में छुपाने का? क्युकी आप अपनी प्रजाति की कमियां  छुपा सके। क्या हक़ है आपको हमे  घूरते रहने का? येही जानना है न कैसा लगता है हमे उस वक़्त? अंदर तक नफरत होती है हर लड़के से और दुःख होता है मैं ऐसे ही किसी लड़के की बहन बेटी या बीवी हूँ। फिर भी हर दिन खुद को समझहा कर हम प्यार करते है आपसे। नफरत होती है इस दो मुहे समाज से। आँखे नोचने का नही, उन पर थूक कर उनकी औकात बताने का मन करता है। क्या हक़ है आपको हमारे कपडे फाड़ने का? क्या हक़ है आपको हमे कपडे पहनाने का?  हम सक्षम है। हमे साथ चाहिए। जैसे आप अपनी महिला साथी से चाहते है।
हम RAPE नही करने लगते। हम में ये अच्छी बात है, आप भी सीख लीजिये इन्हे। न सीखने का हर्जाना हम नही भरेंगे अब। सिर्फ इसलिए कि मैं एक लड़की हूँ इसलिए मुझे जज किया जायेगा। ये कही से भी वाजिब नहीं। बहहुत गुस्सा है इन बातो को लेकर। मैं आपसे किसी से नफरत नही कर रही पर मैं धमकी भी देने की स्तिथि में नही हूँ।किसे दूँ, इस प्रजाति में कुछ अपने है, कुछ गलत नहीं है। हमारी प्रजाति में कुछ अपने नही है और कुछ गलत है। मुझे दोनों से नफरत है। मैं वादा और दावा दोनों करती हूँ कि बदलाव आ रहा है और आएगा। एक तस्वीर बनाने में चलिए मदद करे जहाँ कभी कोई लड़की गुलाबी पलकों से खून के आंसूं नहीं रोये सिर्फ इसलिए क्युकी वो एक लड़की है।

बहुत कुछ कहना है..... अगला पोस्ट जल्द ही
"मैं विमेंस स्टडीज की छात्रा हूँ"

हैप्पी वीमेन डे !!
जल्द ही वो दिन आये जब इसे मनाने का मौका न ढूढ़ना पड़े.…   

Comments

Satyendra said…
फिर भी हर दिन खुद को समझहा कर हम प्यार करते है आपसे, what a beautiful line. only a single line have ability to express the whole problem and solution to itself.
Nice work. congratulation for making some enemy (not me :))
is blog ko padhne ke baad mujhe kuch dosto ki call aur whatsapp aaye ki ye lekh aur writings k mukable accha nahi hai. baat me pata chala ki problem content se thi. writing style to pahle se hi kuch khaas nhi hai, pr is baar ka subject acchha nahi laga.

Ab is aadhe adhure blog ko pura to karna padega...wo taiyaar ho rahe hai ek aur 'not so good' blog padhne ke liye...

dhanyawwad aapk mubarakbad ke liye...:-)
Unknown said…
Nicely written and m sure many more to come. About Nirbhaya issue I won't comment as we have a two faced society.
Acchi baat hai ki aap sab ko 'lines' pasand aa rahi hai. Kuch publically batate hai aur kuch personally. par koi samne se ye nahi batata jo ye lines puchh rahi hai ya kah rahi hai...

Uthaiye anand khoobsurat lines ka... likhate likhate kuchh ho na ho, meri writing skill zarur behtar ho jayegi..
Aapke sneh ke liye abhar..aate rahiye.
अपने जजबातों और मन में उठने वाले सवालों को अच्छी तरह रखा है.
नई पोस्ट : खुशियों की बात हो
Unknown said…
isnt it worth Broadcasting i dunno why the ban over it ppl must see abt this heinous crime n feel enraged my #salute to her parents as wht her tutor said dey wr traditional n poor bt their thinking ws absolutely Modern unbiased towards girl child Hats off to the Spirit of Nirbhaya for her fighting spirit ... Criminals wid Animal instinct mst be given their due punishment asap
Now Nirbhaya is not just a rape case of a girl, it has become a cover name for the file of rape cases of women in India. and day by day it is getting wealthier in number.
This issue of broadcasting and banning of BBC documentary is under political umbrella. Many more moves are still to come to save Our Culture and to maintain Our Dignity.
criminals must be punished. Judiciary is doing well now-a-days. but we women(MOTHER) shud teach them that yes it is a CRIME.

PS- lessons are for those who dont understnd that it is a CRIME. so no offense and no sorry...
Unknown said…
Fir bhi har din khud ko samjha kar hum pyar karte hain aapse.....reality of every woman.
THank you BHaskar ji and Shivangi

Popular Posts