Monday, 25 August 2014

रूबरू : अपने दिल से (पार्ट १)

गर मैंने माना तुझे अपना 
दोनों के लिए क्या ये मुश्किल है
रहना जैसे हम दोनों हैं
मेरी कमियों से न तू नाराज़ 
तेरी कमियों को कर मैं नज़रअंदाज़
क्या नहीं कर सकते एक दूजे से प्यार

अगर नहीं ....
तो मैं क्यों हूँ
तुम क्यूँ हो मेरे अभिमान
मेरी कमियों पे गिरा देते हो गंदे शब्दों का भण्डार
दब जाती हैं उसमे मेरी सारी अच्छाई
हो जाती खुद ही प्रश्न चिन्ह
बन कर हम दो की नज़रें
तब तुम भी नहीं  होते संग मेरे
क्यों की तुम चिढ़  जाते मेरे ढंग से

कितनी दफे मैं समझना चाहूँ
न समझ सकी
आज यही सोच फिर सोयी हूँ
की तुम मेरे
मैं तेरी
आगे न कुछ जानू  मैं
बस तुझको अपना मानू मैं
बस तू भी ऐसे सोता हो
ये सोच रोज मैं सोती हूँ
हर दिन तेरे चिढ़ने से.… सच, मैं डर के सोयी हूँ

किसी रोज तू अनबन को जामा पहना दे अलग होने का
मेरा ढंग बने कारण  वो
मैं और तू भाजक न बन जाये
मैं सच में डर  जाती हूँ
तुझसे और लिपट सो जाती हूँ
तुझसे और लिपट सो जाती हूँ।

मैं सच में तुझे समझती हूँ
हर दिन यही सोच के जीती हूँ।
मैं आधी तुझसे खुद को पूरा करती हूँ
मैं ऐसे ही कुछ जीती हूँ
इसीलिए तो कहती हूँ
कि वो तू ही है
जो मुझसे प्यार करता है
और  मैं तुमसे प्यार करती हूँ।




Saturday, 23 August 2014

One is not born, but rather becomes, a woman.
- Simon de Beauvoir

माँ की क्षमता  मत आंको
बापू की दुविधा तुम समझो
हो लड़की तुम, कोई सहारा नहीं
बेटो सी बराबरी मत मांगो
क्या करना पढ़ लिखकर गुड़िया
जाना एक दिन दूजे गाँव तुझे
क्या करना जान समझ के ये दुनिया
चलना है दबे पाँव तुझे

कौन सा राकेट बनाएगी
ताउम्र रोटी ही तो तू बनाएगी
तो करने दे बेटों को आगे
जीवन भर तू उनको ही तो सजाएगी
देख माँ को अपनी
बापू की छाया दुनिया उसकी
तू भी ऐसा ज्ञान सीख
रोशन करने का काम सीख

रोती वो बेटी आज सुबक
ले बापू भाई की थमी ठंडी अकड़न
माँ की गर्म आहों को
पिछली सूखे की आंधी में
हमे आंसू के समंदर में डुबो गए
धीरता नहीं बचा पायी
ये दुनिया की बातें नहीं हँसा पायी
जिसे सुन मैं बड़ी हुई
जिसे जान मैं लड़की बनी
इस उधारी की ज़िन्दगी में…
वो बतियाँ नहीं समझ आई.

अब सब बेमानी लगता है
ये थक कर खुद को सुला गए
मुझ माँ बेटी को
फिर से झुलसा गए
पढ़ने मुझको भी दे देते 
आज माँ संग रो के सोती नहीं 
बापू जैसी उठती सुबह में 
काम खरच को ले आती  
बना दिया अपाहिज अब 
सब कुछ हो कर बेकार हुई 
रोटी जुगाड़ हो जाता है 
इन्सानी ज़िन्दगी दूजो के नाम हुई 
पढ़ने दो हमको 
जानने दो.... दुनिया की समझ पहचाने दो 
किसे क्या पता 
तुम कब गिर जाओ 
ऐ स्वार्थी मानुस .... अपने लिए ही सही 
हमे भी जीने दो 

हमे अपनी ज़िन्दगी जीने दो।

Your daughter does not have to bound by fate 
she needs to be allowed the power to create her own fate - Urmi Basu

  photo courtesy: google

इसे पढ़ कर मेरे बहुत से मित्र इस बात से इत्तफाक नहीं रखेंगे।  उनका मानना है की अब लड़कियों की स्थिति में काफी हद तक सुधर आ गया है. आपकी इस पॉजिटिव सोच और तथ्यों का मैं स्वागत करती हूँ और ख़ुशी प्रकट करती हूँ।  ये बात भी avoid नहीं की जा सकती की ये तबका अभी भी कुछ नंबर में सिमटा हुआ है.                                                                                                                                           

हमें इस सवाल को ही ख़त्म कर देना है कि.... लड़की अपने हक़ के लिए लड़े।  ये उसका है और उसे मिल रहा है. 



हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...