Monday, 9 January 2023

वही कश्मकश नये लिहाफ़ में

 मैं भूल जाती हूँ

भूल जाती हूँ कि क्या सीखना है 

कहाँ ग़लतियाँ हुई है

कहाँ सुधार करना है

दुनियावी तरीक़ों में हार जाती हूँ 

उसके ऊपर

भूल जाती हूँ कि करना क्या है इस ज़िंदगी में

मैं कई बार आयी हूँ

कुछ कहानी कुछ क़िस्से इस बार भी बुन के छोड़ जाऊँगी 

जब देखा अपना अतीत 

थी खूबसूरत, घुंघराले बाल और छोटा क़द

साथी एक सुडौल शरीरवाला लंबे बाल लंबा कद

कुछ अड़ा हुआ है 

रोक लेता है जैसे अंदर से

एक मुश्त उसको निकाल फेंकना है 

शायद चाहत में कमी है 

जो आज प्यारा है 

वो कभी किसी और का साथी था

जो औरत है वो आदमी था

जो सूरत है वो सूरत ना थी

सीरत सबकी अलग अलग थी 

सबकी कहानी है

मुझे भी बनानी है

फिर क्यों खोयी सी हूँ

किस बात से उधड़ी और किस बात पर रोयी सी हूँ 

अनकहा सब उलझा हुआ है

कहा का कोई मतलब कहाँ है 

किन रिश्तों में आँखें रोयी हैं

इस दुनिया से कई कड़ियाँ जो जोड़ी हैं

क्या मतलब है हर एक रुसवाई का

क्या होता है वादों की तुड़ाई का

मैं सब भूल जाती हूँ

घर की कहानी 

वो छोटी बातें 

पापा का राशिनाम 

बाबाजी का १४ पुश्तों का हिसाब 

जिसे प्यार जान चुना मैंने 

या समझा था ऐसा 

उसकी पहली मुस्कान 

पहली छुअन

मेरे सपने, मेरा मक़सद 

कहीं जाने के लिए उठना 

कहीं उठ कर पहुँचना 

ज़िम्मेदारियों को निभाना 

ख़ुद के अहम को साँस देना 

सब भूल जाती हूँ 

खोखले अहम और खोखले हैं सपने भी

वरना भूलती नहीं मैं

कुछ तो है 

वो चिल्ला के निकलने को बेताब है

रो रो के सैलाब लाने को तैयार है 

पर मेहनत की कमी है या 

अतीत का कोई असर 

नये पाठ की है कोई बनावट 

या फिर बस आलस का है असर 

पर मैं भूल सब जाती हूँ 

अंदर से उठती है हुंकार 

कि साँसों के आने जाने को जान लेना 

मुझे समेट कर उभार देगा 

सब शोर हटा के 

नये समंदर में उछाल देगा 

फिर चाहे सब भूल जाऊँ

शिवा हो या सती 

बस तुम्हें ही याद रह जाऊँ 

तुम्हें ही याद कर पाऊँ

बस तुम्हें। 

माँ

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