इंतेहा बीतेगी कभी…

 मुझे प्यार करना नहीं आया 

जो जानती थी वो समझाना नहीं आया 

जो समझा उसे जताना नहीं आया 

जो मानती थी उसे बताना नहीं आया 

जो भीतर दौड़ रहा था 

सोच में, एहसास में, धड़कनों में 

वो इतना हल्का था

झोंकों में ही बिखर सकता था 

उसे सम्भालना नहीं आया 

मुझे इश्क़ का पता दे दो कोई 

मुझे ऐतबार, इनकार और रूठने का सबब भी नहीं आया 

मोहब्बत मेरे मन में थी 

दिल, मन, दिमाग़ 

खून, नसें, अंतड़िया पता नहीं क्या कहते हो तुम इसे 

पर जहां भी थी 

उन्हें ना मारना आया 

ना जगाना आया 

ना बचाना आया 

बस हर बार आंसू धकेल 

आँखें कुछ कहती तो है 

पर मुझे उसका अनुवाद भी नहीं आया 

एक तमन्ना थी 

कि इश्क़ से जानी जाऊँ 

जब दफ़्न होऊँ 

तो तेरे नाम से पुकारी जाऊँ

नहीं पता 

बस ये सोच की पतंग है जो उड़ती रहती है 

या मेरा सच 

जो भी था मेरे अंदर जन्मा ज़रूर है

उड़ान भर 

पूरे जिस्म को हिला देता है 

पर उसे बताना नहीं आया 

इस दुनिया के काबिल नहीं मैं 

मुझे ना हिसाब आया 

ना घर बनाना आया 

ना किराया देना आया 

ना दरवाज़े पर रहना मंज़ूर 

ना तेरी शर्त पर ऐतबार आया 

बस उड़ान थी इस पतंग की 

इश्क़ क्या, बात क्या, साथ क्या 

मुझे हमराज़ भी ना बन्ना आया 

ना गुमान करना आया

ना इश्क़, ना इबादत 

ना तुम ना मैं 

ना वो, जिसने दिया ये सब 

ना ये लफ़्ज़ 

बस दिल एक ख़ाक ज़र्द लम्हा छिपा आया


ये लिख कर सोच रही हूँ कि मेरी ये उदास पंक्तियाँ अब इस दुनिया को मौक़ा दे देगी उसे तौलने का। लो प्यार किया और अब लफ़्ज़ भी अपना मक़ाम ना पा सकेंगे क्यूँकि डर है कि मेरे इश्क़ की गफ़लत में वो हर बार की तरह गर्दिश में  ना आ जाए। तो समझो तुम उसे कुछ भी कहने से पहले कि ये इश्क़ मेरा है, मौजूँ मेरा है, उससे मुलाक़ात, रोमांच और तकरार मेरा है। वो जब इसमें होता है तो मैं और वो दोनो दुखी हो जाते है। और जब मैं होती हूँ तो लफ़्ज़ होते हैं, एहसास होता है और वो मेरा होता है। 

मेरे इश्क़ में उसको मत लाओ। ना तुम आओ ना वो आए, मुझे बस इश्क़ में मेरा होने होने दो, उसे मेरा होने दो। 

Comments

Tanu said…
Oh my God!!
You wrote this so beautifully ❤️
Ek ek shabd Mai emotion hai

Kabile tareef

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