किसी ने बताया कि मेरे तरीक़े में नाकामी है
मोहब्बत में स्टैंडर्ड नहीं
और काम में पूरा दिल नहीं
बातों में ज़्यादा है सब कुछ
चुप्पी में मासूमियत नहीं
रोने में उस्तादी मिली हो जैसे
हंसने में साथी का हिसाब नहीं
इज़्ज़त करने में अपने गांव की छाप मिली है
एहसास में बचपन का देसीपन
बीमारी ख़ानदानी ले चली हूँ
सोच में मंद बुद्धि
बस बात करना आता है
और वो तो मेरे देस की माटी का हुनर हैं
और अब पता चला कि
नाराज़ होने का तरीक़ा भी सीखना होगा
वो भी नही आता मुझको
सवाल आता है मन में
क्या तरीक़ों में इतनी ख़राबी थी
या कोई अच्छा पढ़ा लिखा मिला ही नहीं
जो बता सके कि मैं किसी क़ाबिल नहीं
सीखना होगा सब
गर जीना चाहूँ इज़्ज़त के साथ,
पर दिल मानता नहीं
वो मोहब्बत भी क्या
जिसके क़द बनाने को सीखना पढ़ जाए
वो इश्क़ ही क्या
जिसके तकरार और इकरार
सिर्फ़ जताने के हो
साथ एक क्लास सी लगे
कहाँ हमसफ़र ही मास्टर और शागिर्द से रहे
हाँ सीखते है हम वक्त बे वक्त
पर तालीम लेना ही मक़सद हो जाए
ये कम गँवारा था मुझे
इश्क़ में भूल जाते है पहचान
यहाँ मुझे पहचान बनाने और खोजने की ही जंग मिली है
अब तो मोहब्बत ही नहीं नाराज़गी का तरीक़ा भी सीखना है मुझे
दिल करता है कि अब अकेले ही मोहब्बत कर ली जाए
अकेले ही नाराज़ हो के मना किया जाए
कहते हैं कि ग़ुरूर है मुझमें
तो अब इसका भी तरीक़ा सीखा जाए
पर क्या ख़ाक आया निभाना मुझको भी
उसकी शिकायत को ही मैंने अपनी रेखा बना ली
पकड़ा के उसको साज ओ समान
अपनी एक सूरत बनवा ली
और वही देख तस्वीर में ख़ुद को सजाती हूँ
वो फिर से कह गया
अब तुम वैसे खूबसूरत नहीं