जब लफ्ज़ न बयां कर पाए
उस लम्हे में मोहब्बत की है,
वादा करने से कतराता हूँ
वादाखिलाफी से बगावत की है,
जुदाई में बेवफाई का रोष नहीं
इसलिए जाते वक़्त रुस्वाई नहीं की है।
उस लम्हे में मोहब्बत की है,
वादा करने से कतराता हूँ
वादाखिलाफी से बगावत की है,
जुदाई में बेवफाई का रोष नहीं
इसलिए जाते वक़्त रुस्वाई नहीं की है।
2 comments:
kab tak sahami sahmi si rahengi aap :)
ye likhawat mohabbat ke ek andaaz hi to hai...aapk hawale is feeling ki bhi izzat krte hai. :) aapka ana aur baatein batana hausala badhata hai. shukriya Satyendra
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