तुम मुझे माटी समझ रौंदों
ये तुम्हारा फ़र्ज़ होगा।
मिट्टी की उड़ान को
सुबह-ओ-शाम पानी डाल
ज़मीं के सीने में सुला देना
इससे भी ख़फ़ा नहीं,
ये तुम करोगे ही।
मैं तो वो घास हूँ
जो हर सतह पर उग आएगी
तुम्हारे चाहे अनचाहे,
तुम बिना काम का समझ
उखाड़ फेंकना,
या सुन्दर कलाकारी जो मेरे साथ जन्मी है
उसे तराश घर आँगन सजाओ,
ये भी तुम्हारा फ़र्ज़ है।
तुम ये करोगे भी
क्युकी तुमने यही सीखा है
और ज़िम्मेदारी भी ली है।
पर तुम अब चाहते हो और तगड़ी पकड़
तुम मुझे डामर में लपेट
बड़ी बड़ी मशीन से
सुन्दर सपाट बिछा देना चाहते हो।
उस पर सफ़ेद काली पीली पट्टी बना,
'उनको' रास्ता बताना चाहते हो।
एक स्मारक बनेगा तुम्हारा
क्युकी तुमने अपनी मेहनत से
मुझे एक छोटी गली से
बड़ी पक्की मेटल रोड बनाया है।
रोड तुम्हारे नाम की होगी
वो सफ़ेद पट्टी मेरी सीमा
और घुमावदार निशान
आने वाली उड़ान की इच्छा रखे बचपन को
तुम्हारे सधे सधाए रास्तों पर चलने का रास्ता बताएँगे।
हाँ, तुमने ही मुझे आज़ादी दी।
पर वो अब आज़ादी की परिभाषा में उड़ान शामिल है,
सवाल शामिल है,
उनकी खोज की लालसा
और उनके जवाब भी आखिर में शामिल है।
मेरे अस्तित्व से गठबंधन है अब उसका
और मैं ये वादा करती हूँ
किसी पर ये आज़ादी थोपूंगी नहीं,तुम्हारी तरह।
हिम्मत ज़रूर दूंगी
सपने देखने की,
जैसे तुमने मुझे दी है
और आज भी दे रहे हो।
पर हाँ, अगर मैं घास हूँ, तो
'पाश' की घास से मुकाबला करना मेरा
मैं ज़िद्दी हूँ
मैं हर दफे निकल आउंगी।
हरा रंग मेरा है,
मज़हब न पूछो तो मैं हरियाली ही लाऊंगी।