जो हुस्न का हिसाब मांगते हो
सीरत नही सूरत पे नकाब मांगते हो
चश्मा पहना के सही गलत का
अपने होने पे खिताब मांगते हो
पैसों से तौल के दोस्ती
कपड़ों के टैग से इंसान जानते हो
पहचानते तो क्या हो
बस सरनेम से रिश्ता जोड़
दुनिया से एक नाम मांगते हो
सफलता विफलता दुःख और ख़ुशी
पंडित भगवा हरा कोई काज़ी
दरिया में डूब मछली से चारा
और मगर से रहने का स्थान मांगते हो
मैं खुश तो तुम ख़ुशी की तारीख मांगते हो
तारिख जो मिली तो
उसके टिकने की तासीर चाहते हो
मेरे रोने में छुपा दर्द
या मेरे जिस्म में चुभन
तुम हर बात का कई हिसाब मांगते हो
और जब मैं देने आऊं जो कभी
अपने होने का पता
आने की जुगत
जाने की खता
गर्दिश में मेरे होश कही
मेरे सपनो के खोने की वजह
मेरा वो यूँ ही
एक मोड़ पे बैठ
किसी रास्ते को ताकने का सबब
जो आऊं बताने कभी
अपने इश्क़ का मज़हब
तो क्यों उनपे
दुनयावी किताबों का बोझ डालते हो
बचपन की कहानी के राजा
राजा की मजबूरी का बयान बाटते हो
क्यों ज़िन्दगी को मजबूरी
और मजबूरी को जीने का सबब
रिश्तों को ज़रूरत
और ज़रूरत को हकीकत
घर को अनाजों और सपनो की गठरी
बचपन को सपना
और सपनों को उडान मानते हो
जब मैं कहने आऊँ तुमसे जो
कि बिना डर के जीने दो मुझे
क्यों डरा के अपने क़ौम में
एक और बुझ चुका चिराग चाहते हो