Thursday, 13 October 2016

कुछ कटु है कुछ असंयम 
मधुभाषी भी तरकश में है
कौन सा तीर चलाऊ अब मैं
सामने युद्ध में लक्ष्मण भी है
विभीषण भी है।

2 comments:

Satyendra said...

naa toh teeron ke prakaar aur naa hi dushmano k prakaron ka koi fark padta ha. aap toh teer chalaiye, koi na koi to mar hi jayega na mare to bhi koi baat nahi; agla teer chalaiye. jaise kisi ne kaha ha--

तुमने जहाँ लिखा प्यार,

वहाँ लिख दो सड़क।

फर्क नहीं पड़ता

मेरे युग का मुहावरा है

फर्क नहीं पड़ता।” (केदारनाथ सिंह)

Kehna Chahti Hu... said...

fark nhi padta...you gave me food for thought

हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...