Monday, 19 September 2016

उसने चुन लिया अपना रास्ता
बस जाते वक़्त कसकर हाथ पकड़ा था
जैसे जाने न देना चाहता हो
पर वो तो जाने से पहले की ज़िन्दगी थी
मैंने ही ज़िद कर ली थी मिलने की
पूछ बैठा अब मिल के क्या होगा
जवाब न दे पायी उसे तब
कि इसी पकड़ में खुद को मसलना चाहती थी
उसकी बाहों में खुद को गिरा के
उसे संभालना चाहती थी
एक बार वो हर बार वाला डर जीना चाहती थी
कि मुझे छोड़ के चला जायेगा एक दिन
आज वो दिन जीने आयी थी
खुद को उसमे एक आखिरी बार जगाने आयी थी
ये आखिरी क्या होता है
होता भी है या नहीं
इस आखिरी रात ये सौगात लेने आयी थी
तेरा तुझसे
मेरा तुझमे
एक हिस्सा चुराने आयी थी
कुछ रिश्ते दूर रहने से
बनते है
ये समझने आयी थी
खुद को क्या समझाऊँ
ये समझने आयी थी
तू आखिरी बार
मेरी आँखों में
वो सब देख ले
जो दिखाने आयी थी
एक आखिरी बार सच
तुझे करीब से देखने आयी थी

मैं कैसे रहूँ
तुम कैसे बढ़ो
आज कल जो करती हूँ
गलत हो जाता है
एक ही ज़िन्दगी में
क्या छोड़ू क्या रखू
अपने हर क्यूँ का क्या जवाब दूँ
तेरे जाने के बाद
ये समझने अब खुद के पास आयी हूँ।


7 comments:

Unknown said...

Very well written ya! 😊

Kehna Chahti Hu... said...

Thank you Saloni.☺
Welcome...!!

Pammi singh'tripti' said...

अहसासों का बखूबी चित्रण..

Pammi singh'tripti' said...

अहसासों का बखूबी चित्रण..

Satyendra said...

aapke naari kirdaar; majbooriyon tatha paristhatiyon ke samaksha sir jhukate se prateet hote hain.

Kehna Chahti Hu... said...

Kuch baatein sir jhuka k kahi jaye to wo kamjori nhi hoti...samne wale ko samjh rahi hai wo ye jatane ka ek tareeka hai.
Kisi ka chor k jana humesha chor k jane wali ki galti nhi hoti...

Kehna Chahti Hu... said...

शुक्रिया

हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...